इंडिया भारत न्यूज डेस्क(IBN): साल 2019 के फरवरी महीने की 14 तारीख ने देश को झकझोर कर रख दिया था। आज इस आतंकी घटना (Pulwama Attack) को दोपहर सवा तीन बजे एक साल पूरे हो रहे हैं, इस आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंतीपोरा के पास गोरीपोरा पर हमलवार ने विस्फोटक भरी कार से सीआरपीएफ काफिले की बस को टक्कर मार दी थी। धमाका इतना भयंकर था कि बस के परखच्चे उड़ गए। इसके बाद घात लगाए आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग भी की। हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी।
14 फरवरी का दिन कभी भुलाया नहीं जा सकता। देश ने अपने 44 जवानों को खोया था। यह आतंकी हमला जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंतीपोरा के पास गोरीपोरा में हुआ था। बलिदान देने वाले इन जवानों में उत्तराखंड के दो वीर बेटे भी थे। एक जवान उत्तरकाशी का, जबकि दूसरा उधमसिंह नगर जिले के खटीमा का रहने वाला था।
उत्तरकाशी के मोहनलाल हुए थे शहीद
शहीद जवान मोहन लाल रतूड़ी उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड के बनकोट के रहने वाले थे। परिजनों ने बताया कि मोहनलाल हमेशा ही देश रक्षा के ऑपरेशन में आगे रहते थे। मोहनलाल रतूड़ी 1988 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। मोहनलाल ने श्रीनगर, छत्तीसगढ़, पंजाब, जालंधर , जम्मू-कश्मीर जैसे आतंकी और नक्सल क्षेत्र में भी ड्यूटी की।
खटीमा का लाल हुआ था शहीद
ऊधमसिंह नगर जिले के खटीमा के मोहम्मदपुर भुढ़िया गांव के जवान वीरेंद्र सिंह भी इस आत्मघाती हमले में शहीद हुए थे। शहीद वीरेंद्र सिंह राणा के पिता दीवान सिंह है।शहीद वीरेंद्र सिंह के दो बड़े भाई (जय राम सिंह व राजेश राणा) हैं। जयराम सिंह बीएसएफ के रिटायर्ड सूबेदार हैं, जबकि राजेश राणा घर में खेती बाड़ी का काम देखते हैं। शहीद वीरेंद्र के दो बच्चे (एक बेटा और बेटी) हैं।
आज पूरा भारत पुलवामा हमले में शहीद हुए शहीदों को नम आखों से याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। इस हमले का भारत के जनमानस पर गहरा असर है। आज तक लोग इस हमले के जख्म से नहीं उबर पाए हैं। हालांकि पुलवामा हमले के बाद आतंक और आतंकियों पर करारा प्रहार किया गया और भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी। उनके तमाम नापाक मंसूबों को बार-बार चकनाचूर किया गया। लेकिन पुलवामा का दर्द लोगों के दिल से कभी नहीं जा सकता है।
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