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स्व. मथुरादत्त मठपाल, फाइल फोटो
स्व. मथुरादत्त मठपाल, फाइल फोटो

मथुरादत्त मठपाल की 83वीं जयंती पर विशेष, कुमाउंनी भाषा के विकास के लिए नौकरी छोड़ पेंशन तक लगा दी

इंडिया भारत न्यूज डेस्क

कुमाउंनी भाषा की सेवा के लिए अपनी सेवानिवृत्ति से तीन वर्ष पूर्व नौकरी छोड़, पेंशन से न केवल कुमाउंनी साहित्य छपवाकर बल्कि कुमाउंनी में दुदबोली पत्रिका निकालने वाले मथुरादत्त मठपाल की आज 83 जयंती है। 29 जून 1941 को अल्मोड़ा जिले के भिकियासैण के नौला गांव में जन्मे मथुरादत्त मठपाल ने अपने जीवन के 35 वर्ष विनायक इंटर कालेज भिकियासैंण में शिक्षण कार्य में बिताए।

मठपाल ने कुमाउंनी साहित्य की सेवा के लिए कुमाउंनी में लिखने के अलावा वर्ष 2000 से 60 पृष्ठों में निकलने वाली त्रैमासिक कुमाउंनी पत्रिका ‘दुदबोलि’ निकालनी शुरू की। इसके 24 अंकों के हजारों पृष्ठों में कुमाउंनी गीत, कविता कथाएं, साहित्य प्रकाशित हुए। 2006 से यह पत्रिका करीब 350 पन्नों की वार्षिकी बनकर निकलने लगी। जिसके 11 अंकों में कुमाउंनी के साथ ही नेपाली, गढ़वाली लोकसाहित्य को स्थान मिला।

मठपाल ने सन 1989-90 और 91 में तीन क्षेत्रीय भाषायी सम्मेलन अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और नैनीताल में आयोजित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। दूर-दूर से कुमाउंनी भाषा प्रेमियों ने इस सम्मेलन में आकर प्रतिभाग किया। और उनमें अपनी मातृबोली के लिए कुछ करने की भावना जगी। पूरे कुमाउं में मठपाल ने दर्जनों कवि सम्मेलन को आयोजित कराने में सहयोग किया। रामनगर में उन्होंने ‘बसंती काव्य समारोह’ नाम से सात कवि सम्मेलनों का आयोजन किया। रामगंगा नदी से अपने विशेष प्रेम के कारण अपने प्रकाशन का नाम रामगंगा रखकर 22 पुस्तकें प्रकाशित करने वाले मठपाल ने रामगंगा पर एक लम्बी कविता ‘चली रहप गंग हो’ भी रची।

इन सारे साहित्यिक कार्यों के लिए मठपाल ने कभी भी सरकारी सहायता की ओर नहीं देखा। सम्मेलन आयोजित कराने और पत्रिका की आर्थिक सहायता के रूप में मिली थोड़ी बहुत धनराशि के अतिरिक्त उन्होंने बाकी सारी धनराशि स्वयं खर्च की। उन्होंने सबसे पहले कुमाउंनी के 3 बड़े कवियों शेर सिंह बिष्ट (शेरदा अनपढ़) की ‘अनपढ़ी’ 1986 और गोपाल दत्त भट्ट की ‘गोमती गगास’ 1987 और हीरा सिंह राणा कि ‘हम पीर लुकाते रहे’ 1989 नाम से तीन किताबों को हिन्दी अनुवाद के सहित प्रकाशित भी किया। इसके अलावा मठपाल ने स्वयं के चार काव्य संकलन ‘आङ-आङ चिचैल है गो’ (1990), ‘पै मैं क्यापक क्याप के भैटुन’ (1990), ‘फिर प्योलि हँसैं’ (2006), ‘मनख-सतसई’ (सन-2006) भी प्रकाशित किए। उनकी अन्य रचनाओं में ‘राम नाम भौत ठुल’ (अप्रकाशित काव्य), श्रीमद्भागवत गीता के सात अध्यायों का कुमाउंनी अनुवाद (अप्रकाशित), ‘मिनुलि’ खण्ड काव्य (अप्रकाशित), रामचरितमानस का कुमाउंनी अनुवाद (अप्रकाशित) शामिल हैं।

पुस्तक सम्पादन के क्षेत्र में मठपाल द्वारा कुमाउंनी के सर्वश्रेष्ठ लेकिन अज्ञात कवि पं. कृपालु दत्त जोशी के महत्वपूर्ण कवि कर्म का ‘मूकगीत’ नाम से सम्पादन/प्रकाशन किया। ‘दुदबोलि पत्रिका में बाबू चन्द्र सिंह तड़ागी की पुस्तक ‘चन्द्र शैली का कई खण्डों, हिमवन्त कवि चन्द्र कुँवर बर्थवाल की 80 कविताओं का कुमाउंनी अनुवाद ‘था मेरा घर भी यहीं कहीं’ नाम से प्रकाशित किया। जुगल किशोर पेटशाली संकलित कुमाउंनी की प्राय: 80 वर्ष पूर्व की सौ होलियों का प्रकाशन ‘गोरी प्यारो लागे तेरो झन्कारो’ नाम से किया। कवि केदार सिंह कुंजवाल, वंशीधर पाठक जिज्ञासु के हिन्दी काव्य संकलन ‘बादलों की गोद से’ व ‘मुझको प्यारे पर्वत सारे’ का प्रकाशन किया।

मठपाल को सन 1988 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा सुमित्रानन्दन पंत नामित पुरस्कार, वर्ष 2010-11 में उत्तराखंड भाषा संस्थान देहरादून द्वारा डॉ. गोविंद चातक पुरस्कार, 2012 में शैलवाणी सम्मान, साहित्य अकादमी नेशनल एकेडमी ऑफ लैटर्स द्वारा वर्ष 2014 में साहित्य अकादमी भाषा सम्मान से चारू चन्द्र पाण्डे के साथ संयुक्त रूप से सम्मानित किया गया।

कुमाउंनी भाषा साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसार देवी, अल्मोड़ा द्वारा 2015 में शेर सिंह बिष्ट अनपढ़ कुमाऊनी कविता पुरस्कार मिलने के अलावा चंद्र कुँवर बर्तवाल सम्मान से उनको अगस्तमुनि में अगस्त 2021 मरणोपरांत सम्मानित किया गया। इन सम्मानों के अतिरिक्त उन्हें दर्जनों सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए।

9 जून 2021 में उनके निधन के बाद उनके परिवार और शुभचिंतकों द्वारा उनकी याद में सम्मान देने की शुरुआत की गई। इस वर्ष उनकी 83 जयंती पर यह सम्मान कवि, लेखक राजाराम विद्यार्थी को 29 जून यानि शनिवार को नैनीताल जिले के रामनगर में एक भव्य समारोह के माध्यम से दिया जाएगा। साथ ही अब दिल्ली से प्रकाशित हो रही दुदबोली के वार्षिकांग का विमोचन भी होगा।

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