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लोकतंत्र का भेड़-बकरीवादी चिंतन…

शाम को सपत्नीक जंगल की तरफ घूमने गया था। जंगल में भेड़-बकरियों को पालने वाली घुमंतू मित्रों का डेरा लगा था। ये लोग टिहरी जनपद के घुत्तु क्षेत्र के निवासी हैं और हर वर्ष जाड़े के मौसम में अपनी भेड़-बकरियों को लेकर इस क्षेत्र में कुछ दिन रहते हैं। पिछले एक तीन सप्ताहों से इनका डेरा यहाँ रहा, अब चूँकि यहाँ भी ठण्ड बढ़ रही है अतः चार पांच दिन बाद यहाँ से थोड़ा निचले क्षेत्र की तरफ चले जायेंगे। हर वर्ष जब भी यहाँ आते हैं, मेरे घर जरूर आते हैं गपशप के लिए। पहाड़ियों की रिश्ते ढूँढने की परम्परा के अनुसार मेरी धर्मपत्नी जी ने इनसे और इनके गाँव वालों से कई रिश्ते तलाश कर लिए हैं।

साथ बैठे तो कुछ बातें भी होंगी है, कई बातें हुई सर्व श्री बालसिंह नेगी, श्री केदार सिंह रावत एवं श्री अजय राणा से। इनमें से बालसिंह (जो कि कक्षा आठ तक पढ़े हुए हैं) और अजय राणा (दसवीं फेल) को मेरी धर्मपत्नी की चाची जी के भाई (श्री बालकृष्ण नौटियाल-सेवानिवृत प्रधानाचार्य घुत्तु इंटर कालेज, टिहरी गढ़वाल) ने पढ़ाया भी है।

बातें तो बहुत हुई, सार संक्षेप में ही लिखता हूँ

बकरी के ढूध से बनी चाय का पहला ग्लास पीते हुए मैंने कहा…यार, सुना है आजकल फलां पार्टी का जनाधार लुढक गया है..

बालसिंह बोले– पार्टी का तो पता नहीं गुरूजी.. परसों मेरी एक बकरी चट्टान से लुढ़क गयी थी… अभी भी लंगड़ा कर चल रही है… दो चार दिन में ठीक न हुई तो काटना पड़ेगा… सिरी और खरोड़े भेज दूंगा आपके लिए…

मैंने विषय बदला– सुना है कि फलां विधानसभा में लोग बाहर से आने वाले प्रत्याशी को रोक रहें हैं आजकल…

अजय सिंह- सर जी… ये विधानसभा क्षेत्र किस गाँव में पड़ते होंगे? हमारी बकरियों को तो आने देंगे? हम तो हर साल टिहरी से उत्तरकाशी-पौड़ी जाते हैं बकरियां लेकर ….अभी तक तो किसी ने रोका नहीं..

मैं- पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं… अब मुख्यमंत्री चेहरे का चुनाव बाकी है..

केदार सिंह- गुरु जी,, क्या फर्क पड़ता है.. मेरे दादा जी के समय से लेकर आज तक जाने कितने मंत्री- मुख्यमंत्री बदल गए…हमें तो बकरी ही चरानी है.. वैसे चेहरा तो आपका भी ठीक ही है बल…

मैंने चाय का दूसरा ग्लास पीना शुरू किया और बोला – ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया का तापमान बदल रहा है और सारी दुनिया खतरे में हैं..

बाल सिंह – गुरु जी यहाँ कल बाघ आया था ,, बाघ को तो कुत्तों ने भगा दिया लेकिन तीन दिन पहले दो आदमी आये थे , हमारी बकरी का एक बच्चा चुरा कर ले गए ..हम ठण्ड के कारण बिस्तर में ही पड़े रहे, ध्यान नहीं दिया..

मैं – शिक्षा व्यवस्था बदहाल होती जा रही है,, सरकारी स्कूल तो बंद होने की कगार पर हैं…

अजय सिंह- सर जी , स्कूल में बीमार बकरियों को ठीक करने का तरीका तो कोई नहीं पढाता… क्या करना हमने ऐसे स्कूल का…बढ़िया है बंद हो जाएँ.. खंडहर बन जायेंगे तो बकरी बाँधने के काम तो आयेंगे

मैंने फिर विषय बदला- आजकल लोग टिकट के लिए दल बदल रहे हैं..

बालसिंह- गुरुजी, बकरियाँ हमेशा घास की तलाश में रहती हैं.. हमारी बकरी भी कई बार दूसरे बकरी वाले के रेवड़ में चली जाती है.. पर हम पता लगते ही वापिस कर देते हैं…

मैं ( चाय का तीसरा ग्लास सुड़कते हुए )- देश की राजनीति तेजी से बदल रही है, कुछ पता नहीं चलता कि कौन किस पार्टी का वफादार है..आज कसम यहाँ खाते हैं.. कल कहीं और दिखाई देते हैं…

केदार सिंह- गुरु जी, हमसे भोटिया कुत्ते के बच्चे ले लो… बढ़िया कुत्ते हैं… आजीवन वफादार रहेंगे आपके..

मैं ( चाय के खाली हो चुके फ्राइंग पेन की तरफ देखते हुए) – देश-दुनिया में बड़े-बड़े नेताओं की कमी सी लगती है इन दिनों..

बाल सिंह- हमारे पास भी बेचने के लिए बड़े बकरे कम ही हैं आजकल… ये बच्चे बड़े हो जाय तो बेचकर चार पैसे कमा घर भेज पायेंगे…. वैसे आपके पास कोई सस्ता नेता हो तो बताना… बकरियों को हांकने के काम पर लगा देंगे.T..

फिर ठण्ड बढ़ने लग गयी थी, और चूँकि दुनिया के सभी बुद्धिजीवियों की तरह मुझे भी खुले आसमान के नीचे चिंतन करने की आदत नहीं,, जाड़ें में रजाई ओढ़कर और गर्मियों में एसी में बैठकर चिंतन करना ज्यादा मुनासिब रहता है अपुन के लिए,, सो वापिस घर आना ही ठीक समझा। तीन ग्लास चाय पीने के बाद शूगर का नाप भी तो लेना था।

साभार
मुकेश प्रसाद बहुगुणा

लेखक के बारे में- 
(लेखक राजकीय इंटर कॉलेज मुंडनेश्वर, पौड़ी गढ़वाल में राजनीति विज्ञान के शिक्षक है और वायु सेना से रिटायर्ड है। मुकेश प्रसाद बहुगुणा समसामयिक विषयों पर सोशल मीडिया में व्यंग व टिप्पणियां लिखते रहते है।)

 

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