देहरादून: साहित्यकार एवं आंदोलनकारी त्रेपन सिंह चौहान की जयंती के अवसर पर देहरादून के अग्रवाल धर्मशाला में संगोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें राज्य के बुद्धिजीवी, विपक्षी दल एवं जन संगठनों ने शिरकत की।
संगोष्ठी के दौरान वक्ताओं ने चिंता व्यक्त की कि नफरत की राजनीति को फैलाने का प्रयास लगातार हो रहा है और राज्य में निर्दोष लोगों को बार बार धर्म के आधार पर निशाना बनाया जा रहा है। जिसकी वजह से राज्य की छवि खराब हो रही है।
वक्ताओं ने कहा कि पिछले चार महीनों से देश और दुनिया के मीडिया में उत्तराखंड राज्य आपदाओं एवं नफरती प्रचारों से ही जाना जा रहा है। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर है। इन्वेस्टर समिट के नाम पर कॉरपोरेट घरानों को बड़ी सब्सिडी देने वाली सरकार को इस सवाल पर भी विचार करना चाहिए कि अगर राज्य में सांप्रदायिक गुंडागर्दी एवं त्रासदी बढ़ती रहेगी, तो क्या पर्यटन एवं निवेश पर असर नहीं होगा? वक्ताओं ने हाल में की गयी पत्रकारों की गिरफ़्तारी की भी निंदा की।
वक्ताओं ने कहा कि त्रेपन सिंह चौहान ढेर सारे जन संघर्षों से जुड़े थे। उनकी पूरी ज़िन्दगी न्याय, संघर्षों एवं इंसान की गरिमा पर केंद्रित और प्रतिबद्ध थी। लेकिन वर्तमान स्थिति में ऐसे नफरत, दमन, और झूठों द्वारा ऐसे संघर्षशील लोगों के हर सिद्धांत को मिटाने का प्रयास चल रहा है। ऐसी नीतियों पर अमल करने के बजाय सरकार को राज्य की लोकतांत्रिक एवं संघर्षशील विरासत को आगे बढ़ाना चाहिए।
संगोष्ठी को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के समर भंडारी, उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ एस.एन सचान, उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के हरबीर सिंह कुशवाहा, वरिष्ठ पर्यावरणविद डॉ रवि चोपड़ा, वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ एन.एन पांडेय, लेखक और पत्रकार राकेश अग्रवाल, चेतना आंदोलन की सुनीता देवी आदि ने सम्बोधित किया।
इस मौके पर चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, राजेंद्र शाह, मुकेश उनियाल, सुवा लाल, अरुण तांती, पप्पू, संजय सहनी, रमन पंडित, प्रभु पंडित समेत कई लोग कार्यक्रम में शामिल रहे।
देहरादून के अलावा चमियाला, रामनगर, अल्मोड़ा, सल्ट, और गरुड़ में ‘नफरत नहीं रोज़गार दो’ नारे के साथ संगोष्ठी और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए गए।