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‘सुमन की परंपरा जिंदा है, हम उन्हें न भूले थे न भूलेंगे…. श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पर उपपा कार्यालय में हुई संगोष्ठी

अल्मोड़ा: राजशाही के खिलाफ 84 दिनों तक भूख हड़ताल करने वाले अमर शहीद श्रीदेव सुमन का आज बलिदान दिवस है। इस मौके पर उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि, श्रीदेव सुमन की परंपरा जिंदा है हम उन्हें न भूले हैं न भूलेंगे। इस मौके पर वक्ताओं ने सुमन के जीवन से प्रेरणा लेते हुए आज के उत्तराखंड को संवारने के लिए जनता से आगे आने का आह्वान किया।

उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पी सी तिवारी ने महान स्वतंत्रता सेनानी श्रीदेव सुमन के जीवन व उनके संघर्षों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 25 मई 1916 को चंबा विकासखंड के जौल गांव में जन्मे श्रीदेव सुमन ने मात्र 28 वर्ष के जीवन में टिहरी रियासत के ज़ुल्मों व भारत की आजादी के लिए ऐतिहासिक व उल्लेखनीय संघर्ष किए। उन्होंने एक कुशल संगठनकर्ता, पत्रकार व साहित्यकार के रूप में टिहरी रियासत व देश में आज़ादी के संघर्षों को नई दिशा दी।

तिवारी ने कहा कि श्रीदेव सुमन टिहरी प्रजामण्डल की स्थापना से ही उसके मंत्री रहे। 1939 में उन्होंने इसके प्रतिनिधि के रूप में अखिल भारतीय देशी रियासतों के परिषद् की लुधियाना में हुई बैठक की भागीदारी की एवं उसकी केंद्रीय समिति के सदस्य बनाए गए। उन्हें टिहरी रियासत के हुक्मरानों ने 80 दिनों में 5 बार गिरफ़्तार किया। 1942 में श्रीदेव सुमन को भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ़्तार किया गया। 30 दिसम्बर 1943 को टिहरी रियासत ने उन्हें गिरफ़्तार किया और 3 मई 1944 को उन्होंने अपनी ऐतिहासिक भूख हड़ताल शुरू की जो 25 जुलाई 1944 को उनके बलिदान पर समाप्त हुई।

तिवारी ने कहा कि श्रीदेव सुमन जिंदा रहते हुए जो चुनौती राजशाही व अंग्रेजों के लिए थे। उससे बढ़ी चुनौती उन्होंने अपने बलिदान के बाद दी है। उन्होंने सुमन के जीवन से प्रेरणा लेते हुए आज के उत्तराखंड को संवारने के लिए जनता से आगे आने का आह्वान किया।

कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि सुमन टिहरी प्रजामण्डल के माध्यम से नरेश की छत्रछाया में उत्तरदायी प्रजातंत्र शोषण, दमन के अंत व नागरिक अधिकारों की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे थे। राजशाही के फरमान पर श्रीदेव सुमन को अनेकों बार टिहरी जेल में डाला गया। उन्हें जेल में अनेकों यातनाएं दी गई। और प्रजा के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने अपना बलिदान दे दिया।

वक्ताओं ने कहा कि सुमन के बलिदान के 80 वर्ष बाद भी भारतीय सत्ता के चरित्र में मौलिक अंतर नहीं आया है। आज भी श्रमिक नेताओं को गुंडा घोषित किया जा रहा है। लोकतांत्रिक अधिकारों को हर क्षेत्र में कुचला जा रहा है जिसके चलते सुमन के संघर्षों की परंपरा आज भी जिंदा रखने की जरूरत है। वक्ताओं ने कहा कि आज हमें अपने नागरिक बोध को जगाने व आज भी उत्तराखंड व हिमालय के पर्यावरण, संसाधनों व समाज के विकास के लिए संघर्ष में उतरने की जरूरत है।

संगोष्ठी के अध्यक्षता मंडल में बालप्रहरी के संपादक उदय किरौला, शिक्षाविद सी एस बनकोटी एवं पूर्व प्राचार्य नीरज पंत शामिल रहे।

बैठक में कुमाऊनी भाषा के कवि व साहित्यकार महेंद्र ठकुराठी, एडवोकेट पान सिंह बोरा, अफसर अली, पूर्व सीडीपीओ भगवती गुसाईं, उपपा की केंद्रीय उपाध्यक्ष आनंदी वर्मा, उपपा के महासचिव एडवोकेट नारायण राम, एड जीवन चंद्र, अमीनुर्रहमान, मुहम्मद साकिब, रेखा आर्या, दीपा देवी, राजू गिरी, उछास की भावना पांडे आदि लोग मौजूद रहे।

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