भीतर की आग में दहा करें जब प्रेम कलश मनुहार भरे, चलती मतवालों की टोली। कुछ रंग हास के खास लिए, अनगढ़, अबूझ अठखेली। फागुन के फाग समेट राग, कुंचित अलकों पर प्रेम साज, सतरंगी नभ करती जाती, प्रिय मिलन हृदय जलती बाती। पावस का यह है सुखद पर्व, जन …
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