भीतर की आग में दहा करें
जब प्रेम कलश मनुहार भरे, चलती मतवालों की टोली।
कुछ रंग हास के खास लिए, अनगढ़, अबूझ अठखेली।
फागुन के फाग समेट राग, कुंचित अलकों पर प्रेम साज,
सतरंगी नभ करती जाती, प्रिय मिलन हृदय जलती बाती।
पावस का यह है सुखद पर्व, जन जीवन, जल- थल सुखद सर्व।
मधुकर मधु की गुंजित है डाल, फूले बुरांश, उड़ता गुलाल।
सब एकमना होकर गाते, मृदु राग, मधुर बजते बाजे।
ममता, समता, बंधुता लिए, तम, मन्यु, द्वेष का हरण करें।
राधा सी रीति निभाकर फिर, मधुकर सी प्रीति संचरित करें।
केवल बाहर की आग नहीं, भीतर की आग में दहा करें।
केवल अपनी अभिलाषा ना, सबका हित चिंतन किया करें।
यह होली ही तो सिखलाती, जीवन की पहेली सुलझाती।
अब अन्तर्कलह मिटाने का, है समय एक हो जाने का।
आओ मिलकर होली गाएं, सबके हित नव रंग बरसाएं।
(कापीराइट)
डॉ. हेम चन्द्र तिवारी
प्रवक्ता- हिन्दी
राजकीय इंटर कॉलेज बसर, अल्मोड़ा