कातिलाना हमले की धारा…। अंग्रेजी हुकूमत के समय के कानून 7 क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट की धारा…। पीपीडी एक्ट और तमाम अन्य धाराएं। जैसी की आशंका थी, पुलिस ने युवाओं के आंदोलन को कुचलने के लिए वही किया। 13 युवा नेतृत्वकर्ताओं को संगीन धाराओं में जेल में डाल दिया। मगर, देहरादून पुलिस के पास इस बात का जवाब नहीं है कि शांतिपूर्ण धरने पर बैठे युवाओं को आखिर बुधवार आधी रात को जबरन उठाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? किस के निर्देश पर ऐसा किया गया? फिर जब इस सबके खिलाफ हजारों युवा आक्रोश व्यक्त करने उमड़े और दोपहर बाद तक आमतौर पर शांत बने थे, तब घंटाघर पर चंद पुलिस और प्रशासनिक अफसरों को अचानक लाठीचार्ज करके किसकी नजरों में अपने अंक बढ़वाने की आवश्यकता आन पड़ी? यानी, दून पुलिस बीती रात से ही 1994-95 की ‘मुलायम सिंह सरकार ‘ वाली पुलिस की भूमिका में अवतरित हो गई, जिसका उत्तराखंड आंदोलन में दमन का लंबा काला इतिहास रहा है। 307 जैसी धाराएं भी उसी दौर में आंदोलनकारियों पर लगा करती थी। देहरादून में पुलिस दमन के मामले में मुलायम काल में अक्सर ‘धाकड़’ हो जाया करती थी। मगर, अब वह ‘धाकड़ ‘ के साथ-साथ ‘हैंडसम’ भी हो चुकी है।
बहरहाल, बुधवार रात ‘धाकड़’ पुलिस ने गांधी पार्क में जो रायता बिखेरा, उसे वीरवार दोपहर और शाम होते-होते उसने और फैला दिया। अब चंद पुलिस अफसरों के फैलाए इस रायते को ‘धाकड़’ सरकार ‘हैंडसम’ तरीके से समेट पाती, उससे पहले ही पुलिस ने ‘झूठ की बुनियाद’ पर संगीन आपराधिक धाराएं युवाओं पर लादकर और उन्हें सलाखों के पीछे डाल कर सरकार के गले में हड्डी फंसा दी है।
दरअसल, सरकार को कारवाई तो उन अफसरों पर करनी चाहिए थी, जिन्होंने बुधवार रात को बवाल की बुनियाद रखी और वीरवार शाम घंटाघर चौक पर लाठियां बरसाकर उस बवाल को महाभारत में तब्दील करते हुए एकाएक धामी सरकार को विलेन बनवा दिया। मगर, यहां कार्रवाई भी हुई तो उन्हीं युवाओं पर जो भ्रष्टाचार और घपले – घोटालों में इस राज्य के अग्रणी हो जाने से मायूस हैं। और हां, पुलिस और प्रशासन ने अपने बचाव में पेशबंदी करते हुए जो कहानी तहरीर में बनी है, वह बेहद लचर, इकतरफा और झूठ का पुलिंदा भर है…..
साभार
वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र अंथवाल की फेसबुक वॉल से…
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