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Chandrayaan-3 Landing: चांद पर फहराया तिरंगा, वो 5 कारण जिनके चलते भारत ने रचा इतिहास

नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने चांद पर इतिहास रच दिया है। चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग हो गई है। इसरो ने अपने सीधे प्रसारण में इसकी जानकारी दी है। इसके साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश भी बन गया।

पूरी दुनिया इस ऐतिहासिक पल का टकटकी लगाए इंतजार कर रही थी। लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) से युक्त लैंडर मॉड्यूल ने शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग की।

पांच वजह जिनसे इसरो का मिशन कामयाब रहा

2019 के चंद्रयान-2 मिशन से सबक लिया

चंद्रयान-3 से पहले 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया था। यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश करने वाला किसी भी देश का पहला अंतरिक्ष मिशन था। हालांकि, चंद्रयान-2 मिशन का विक्रम चंद्र लैंडर छह सितंबर 2019 को चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

इसरो के वैज्ञानिकों ने मिशन से भी काफी कुछ सीखा। इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ कहते हैं कि 2019 का मिशन चंद्रयान-2 आंशिक सफल था, लेकिन इससे मिले अनुभव इसरो के चंद्रमा पर लैंडर उतारने के लिए नए प्रयास में काफी उपयोगी साबित हुए। इसके तहत चंद्रयान-3 में कई बदलाव किए गए।

चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह पर नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया।

लैंडर में पांच की जगह चार इंजन लगाए गए

चंद्रयान-2 के लैंडर में पांच इंजन लगे थे जबकि इस बार भार कम करने के लिए चंद्रयान-3 में चार इंजन लगाए गए। चंद्रयान-3 में लेजर डॉपलर वेलोसिमिट्री के साथ चार इंजन लगाए गए जिसका उद्देश्य था कि वह चंद्रमा पर उतरने के सभी चरणों में अपनी ऊंचाई और अभिविन्यास को नियंत्रित कर सके।

लैंडर के पांव पहले के मजबूत बनाए गए

चंद्रयान-3 में किसी भी अप्रत्याशित प्रभाव से निपटने के लिए पैरों को मजबूत किया गया। इसके साथ अधिक उपकरण, अपडेटेड सॉफ्टवेयर और एक बड़ा ईंधन टैंक लगाए गए। ऐसा इसलिए किया गया था कि यदि अंतिम मिनट में कोई बदलाव भी करना पड़ा तो ये उपकरण उस स्थिति में महत्वपूर्ण हो सकें।

लैंडिग का क्षेत्रफल बढ़ाया गया

इसरो ने चंद्रयान-2 से सीखते हुए चंद्रयान-3 में व्यापक बदलाव किए। चंद्रयान-2 के उतरने के लिए जितना क्षेत्र निर्धारित किया गया था, उसमें काफी इजाफा किया गया। लैंडिंग के लिए लगभग 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तय किया गया।

अल्टरनेट लैंडिंग की सुविधा से लैस किया गया

इसरो ने परीक्षण के दौरान यह तय कर लिया था कि अगर लैंडिंग के लिए एक जगह सही नहीं लगी तो दूसरी जगह भी तैयार रहेगी। चंद्रयान-3 को टारगेट स्थल से आगे-पीछे ले जाने की व्यवस्था की गई। एक किलोमीटर के दायरे में उसकी सुरक्षित लैंडिंग हो सके, इसे पहले ही तय किया गया। चंद्रयान-3 के लिए समतल जगह का चयन किया गया है। ऐसा इसलिए कि अगर उस वक्त कोई पदार्थ बीच राह में आया तो भी चंद्रयान का संतुलन नहीं बिगड़ने दिया जाएगा।

 

 

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