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हिमालयी पारिस्थितिकी और इकोटूरिज्म से संबंधित वानिकी मुद्दों का प्रशिक्षण ले रहे IFS अफसर, बिनसर वाइल्डलाइफ सेंचुरी का किया भ्रमण

अल्मोड़ा: गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारियों के लिए हिमालयी पारिस्थितिकी और इकोटूरिज्म से संबंधित वानिकी मुद्दों पर अनिवार्य प्रशिक्षण पाठ्यक्रम जारी है। यह प्रशिक्षण पाठ्यक्रम वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के दिशा निर्देशों पर पर्यावरण संस्थान द्वारा आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम में कुल नौ तकनीकी सत्र आयोजित किये जा रहे हैं। जिनमें विभिन्न विषय शामिल हैं। इन तकनीकी सत्रों विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक एवं विषय विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं। इस दौरान प्रतिभागियों को बिनसर वाइल्डलाइफ सेंचुरी का भ्रमण भी कराया गया।

एक सप्ताह चलने वाले इस कार्यक्रम में हिमालयी वन पारिस्थितिकी, वन संरक्षण और प्रबंधन, वन नीति और शासन, सामुदायिक जुड़ाव और आजीविका, इकोटूरिज्म और टिकाऊ प्रथाओं, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और लचीलापन, जैवसंसाधन, टिकाऊ उपयोग और पहुंच और लाभ साझाकरण सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल होगी। वानिकी, पारिस्थितिकी, नीति प्रशासन, पारिस्थितिक पर्यटन और सतत विकास में अनुभव वाले राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों की एक टीम को इस प्रशिक्षण के दौरान व्याख्यान देने और पैनल चर्चा में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। जिसमें प्रतिभागियों को उभरते वानिकी और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर विशेषज्ञों के साथ-साथ अनुभव साझा करने के माध्यम से एक-दूसरे से सीखने का अवसर मिलेगा।

यह प्रशिक्षण कार्यक्रम वन अधिकारियों को वन संरक्षण, हिमालयी पारिस्थितिकी और पारिस्थितिक पर्यटन के बीच संबंधों की गहरी समझ को बढ़ावा देकर क्षेत्र को प्रभावित करने वाली वानिकी समस्याओं के समाधान के लिए सूचित कार्रवाई करने के लिए आवश्यक ज्ञान से तैयार करेगा। इसका उद्देश्य हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक स्थायी भविष्य की दिशा में काम करने के लिए विविध हितधारकों को एक साथ लाना, एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है। साथ ही स्थानीय समुदायों का समर्थन करना और जिम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देना है।

तीसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत सुबह योगा सत्र से हुई। इसमें विभिन्न हिस्सों से आये भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारियों तथा संस्थान के वैज्ञानिकों ने योगासन किया। इस सत्र में योगासन का प्रशिक्षण आर्ट ऑफ़ लिविंग, अल्मोड़ा से आये प्रशिक्षकों ने दिया।

आज कार्यक्रम के पांचवे सत्र का विषय ‘इनिशिएटिव्स अंडर नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज’ था। इस सत्र में पर्यावरण संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक ई. किरीट कुमार ने अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने राष्ट्रीय हिमालयन अध्ययन मिशन के अंतर्गत द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों तथा उपलब्धियों के बारे में प्रतिभागियों को जानकारी प्रदान की। उन्होंने मिशन के अंतर्गत प्लास्टिक कचरे से ग्रैफीन निर्माण के बारे में बताया और कहा कि प्लास्टिक कचरे से ग्रैफीन बना कर उससे कई प्रकार के उपयोगी उत्पाद बनाए जा सकते हैं जो पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देंगे। उन्होंने उत्तराखंड में 5 रिवर बेसिन फ़िल्तेरतिओन मॉडल विकसित करने के बारे में भी बताया।

किरीट कुमार ने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों में शहरीकरण दर बहुत तेजी से बढ़ रही है। हिमालय में यह दर 48.4 प्रतिशत है। जबकि पूरे भारत की शहरीकरण की दर 38.8 प्रतिशत है। उन्होंने मिशन के अंतर्गत बांस आधारित निर्माण के लिए सस्ते बांस ट्रीटमेंट प्लांट के बारे में भी जानकारी दी।

कार्यक्रम के छठे सत्र का विषय ‘लैंडस्केप एप्रोच फॉर कन्सर्वेशन एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ था। इस सत्र में रीडिफाइंड सस्टेनेबल थिंकिंग (रेस्ट), नेपाल के लीड स्ट्रैटीजिस्ट राजन कोत्रू ने अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने हिमालय के सतत विकास के लिए नीति निर्माता तथा सरकारी क्षेत्र के सामंजस्य बनाने की बात की।

सत्र के बाद सभी प्रतिभागियों को बिनसर वाइल्डलाइफ सेंचुरी का भ्रमण कराया गया। भ्रमण कार्यक्रम में पर्यावरण संस्थान से डा. आशीष पाण्डेय तथा डा. सुबोध ऐरी शामिल रहे।

 

 

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