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Dr. Girish chandra tiwari
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‘विद्यालयों को प्रयोगशाला नहीं ज्ञानार्जन का केंद्र बने रहने दें सरकार’.. पढ़ें डॉ. गिरीश चंद्र तिवारी की यह टिप्पणी

इंडिया भारत न्यूज डेस्क, 23 मई, 2022
उत्तराखंड बनने से अगर कोई विभाग प्रभावित हुआ तो सबसे ज्यादा शिक्षा विभाग। इस विभाग में आये दिन नित नये-नये प्रयोग आजमाने में मंत्री, अधिकारी तथा मिनिस्ट्रीयल कर्मचारी कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। विभाग द्वारा विद्यालयी विकास के लिए सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और अब समग्र शिक्षा अभियान के तहत छात्र संख्यानुसार विकास मद में अल्प धनराशि उपलब्ध करायी जाती है। इसके अतिरिक्त स्कूली ड्रेस, पुस्तकीय सहायता हेतु धनराशि(या कभी विभाग स्वयं देता है) अब स्कूल बैग व जूते देने की बात कहीं जा रही है।

पहले विद्यालय छात्र संख्या बालक-बालिका वर्षवार विभाग को देता है तथा यह भी सूचना देता है छात्रों के बैंक एकाउंट किस बैंक में है विभाग से चैक से प्रधानाचार्य/प्रधानाध्यापक के नाम से धनराशि आवंटित होती थी, जिसे सम्बंधित अधिकारी छात्रों के खाते में डाल देता था। लेकिन अब स्थिति दिन व दिन जटिल बनाई जा रही है। छात्रों की सूचना आए दिन नये-नये साफ्टवेयर से मांगी जा रही है। इन साफ्टवेयर में डाटा भरना शिक्षक तो दूर विभाग ने जिसे डाटा फिटिंग की जिम्मेदारी दी है। वह भी सही-सही बताने में असमर्थ हैं। उदाहरण के लिए ‘गुगल सीट’ जिस वर्गवार छात्र विवरण देना है।

यहीं हाल मध्याहृन भोजन योजना का है। पहले विद्यालय के पास जूनियर स्तर पर दो तथा माध्यमिक स्तर पर तीन खाते मध्यान्ह भोजन, सर्वशिक्षा एवं राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा के होते थे। एक योजना के तहत इन बैंक खातों को एक बैंक से बन्द कराकर दूसरे में तथा फिर दूसरे से बन्द कराकर एक नये बैंक में खोलने के आदेश दिए हैं। सोच यह थी कि ऐसा करने से समय तथा कार्य की गुणवत्ता सही होगी। इस योजना से विद्यालय का प्रधानाचार्य/प्रधानाध्यापक बैंक कार्य के कारण विद्यालय से बाहर होने को मजबूर है।

इसी तरह एक प्रयोग यह भी किया जा रहा है कि सरकारी स्कूलों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों से बेहतर हो इसके लिए मासिक परीक्षा का आयोजन हो रहा है। प्रदेश स्तर पर प्रतिमाह कुछ चुनिंदा प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, हाईस्कूल तथा इण्टर के लिए विभागीय स्तर पर प्रश्न पत्र तैयार कर छात्रों के बौद्धिक स्तर का आकलन हो रहा है और अन्त में गाज शिक्षक पर ही गिरेगी।

जहां तक मेरा मानना है कि इन सब बातों की अपेक्षा शिक्षक पर विश्वास व्यक्त करते हुए विद्यालयों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए। रूपांतरण कार्यक्रम के तहत विद्यालयों की छवि सुधरी है वहां पर मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है। वर्तमान में इन विद्यालयों में छात्र संख्या भी बहुत अच्छी है। पहले की स्थिति और आज की स्थिति में अन्तर भी है। आज सरकारी शिक्षक अपने उपलब्ध भौतिक ज्ञान को बच्चों तक पहुचाने में पीछे नहीं रहता। स्कूलों के अधिकतर शिक्षक टयूशन से विरत रहते हैं। इसी कारण आज कोचिंग सेंटरों की बहुलता जगह-जगह दिख रही है।

जिला प्रशासन के अधिकारियों से विद्यालयों में जाकर शिक्षण कार्य कराने का फरमान हास्यास्पद है। क्या जिला प्रशासन के पास अब कोई कार्य नहीं कि वे स्कूलों में जाकर शिक्षण कार्य करें। वह अपने जनपद, अपने विभाग को देखें। जो कार्य शिक्षक का है उसे ईमानदारी से करने दिया जाए। हां अगर किसी मंत्री या किसी अधिकारी को लगता है या जन शिकायत आती है तो टीम ले जाकर निरीक्षण कर ले। अगर एक उच्च अधिकारी विद्यालय जाकर शिक्षण करेगा तो वह विभाग पर ही अंगुली करेगा कि इसे.. क्यों पाठ्यक्रम में रखा है, किसने इसे लिखा और किसने इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने की अनुमति दी। जिसका काम उसी को साजे, वाली बात आवश्यक है।

रही छात्र प्रवेशोत्सव की। गांव के गांव रोजगार की तलाश में खाली हो चुके हैं। गांवों में गिने चुने परिवार है। सन्तानोपत्ति भी एक या दो है ऐसे में शिक्षक बच्चे लाये भी तो कहां से। अगर जिम्मेदारी तय करनी है तो शिक्षक के साथ-साथ ग्राम प्रधान, सभासद, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, नगर पंचायत के साथ-साथ स्थानीय विधायक एवं जन प्रतिनिधियों की भी तय हो। तभी यह ज्ञात हो पायेगा।

कुल मिलाकर यह कहना है कि सरकार सरकारी विद्यालयों में प्रयोग कम बल्कि सकारात्मक सोच के साथ काम करें। शून्य छात्र वाले विद्यालय, शून्य छात्र संख्या वाले शिक्षकों, दस से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों तथा शिक्षकों तथा एक ही परिसर या 100 मीटर की परिधि में चल रहे प्राथमिक, उच्च प्राथमिक या हाईस्कूल, इण्टर का एकीकरण करने जैसे कार्य किए जा सकते थे। ऐसा करने से छात्र संख्या में सुधार के साथ-साथ राजस्व की बचत भी होगी। सभी प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, हाईस्कूल तथा इण्टर कालेजों में प्रधानाचार्य, प्रधानाध्यापक की नियुक्ति करने शिक्षकों के पद भरने जैसे कार्यों की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वह खोले जा रहे प्राइवेट स्कूलों को मान्यता तभी दे जब उस क्षेत्र में कोई सरकारी विद्यालय न हो।

विद्यालयों में चतुर्थ वर्ग की नियुक्ति नहीं हो रही है। लगता है इसे शासन ने मृत घोषित कर दिया है। उत्तर प्रदेश में कहीं एक समाचार देखा कि विद्यालय अवकाश के दौरान कोई चोरी आदि की घटना होती है, तो चोरी हुई सामग्री की वसूली प्रधानाचार्य, प्रधानाध्यापक के वेतन से होगी। सम्भव है यही आदेश उत्तराखंड में भी लागू हो क्योंकि उत्तराखंड या तो मोदी मॉडल पर या फिर योगी मॉडल पर ही चल रहा है। शिक्षक संगठनों को भी इस विषय पर सोचना होगा।

(यह लेखक के अपने विचार है।)

 

(लेखक के बारे में-
डॉ. गिरीश चंद्र तिवारी शिक्षा विभाग से प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त है। वह सोशल मीडिया में समसामयिक विषयों पर टिप्पणी करने के साथ ही राजनीतिक विश्लेषण भी करते है।)

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