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‘हम लड़ते रयां बैणी, हम लड़ते रूलो’..पुण्यतिथि पर याद किए गए प्रसिद्ध जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’

अल्मोड़ा। उत्तराखंड राज्य आंदोलन समेत कई जन आंदोलनों को अपने जनगीतों व कविताओं से धार देने वाले प्रसिद्ध जनकवि गिरीश चंद्र तिवाड़ी ‘गिर्दा’ की 12वीं पुण्यतिथि पर सांस्कृतिक नगरी में उन्हें याद किया गया। नगर के स्वागत की छत पर आयोजित कार्यक्रम में आंदोलनकारियों, कवि, रंगकर्मियों समेत अन्य लोगों ने गिर्दा के चित्र पर पुष्प चढ़ाकर व उनके जनगीत गाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर जै नन्दा लोककला केन्द्र की छोलिया टीम ने शानदार प्रस्तुति दी।

स्वागत की छत में आयोजित कार्यक्रम में जनगीत गाते लोग, फोटो इंडिया भारत न्यूज

जाने माने जनकवि गिर्दा को याद करते हुए उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष व राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी ने कहा कि गिर्दा ने ताउम्र संघर्ष किया। वह एक केंद्रीय सरकारी कर्मचारी थे। लेकिन जब पहाड़ की आवाज उठी तथा पहाड़ में दमन, शोषण, अत्याचार, लूट बढ़ी तो वह नौकरी छोड़ जनसंघर्षों में कूद पड़े। उन्होंने कहा कि गिर्दा हमेशा गरीब, किसान, आम लोगों की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते थे।

नैनीताल से पहुंचे वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह ने कहा कि गिर्दा कहते थे जब तक सांस चलेगी तब तक वह आन्दोलन करते रहेंगे। आन्दोलन को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता है। आज भी हमारा पहाड़ी राज्य तमाम संकटों से जूझ रहा है। हेलंग घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यहां घास काटने पर महिलाओं पर रिपोर्ट दर्ज होती है और उन्हें छोटे से बच्चे के साथ घंटों थाने में बैठाए रखते हैं। इसके लिए सभी को आगे आना होगा। तभी पहाड़ी राज्य की अवधारणा और गिर्दा के देखे हुए सपने पूरे होंगे।

कार्यक्रम में गिर्दा की पत्नी हेमलता तिवाड़ी और पुत्र तुहिन तिवाड़ी ने भी प्रतिभाग किया। तुहिन तिवाड़ी ने गिर्दा के रचे गीत गाकर उनको याद किया।

कार्यक्रम के आयोजक पत्रकार नवीन बिष्ट ने कहा कि गिर्दा ने हमेषा मौजूदा हालतों को लेकर लोगों के बीच में कार्य किया। वह जीवनभर पहाड़ की बेहतरी के लिए लड़ते रहे। उनके रचे गीत आज भी आन्दोलनों में गाए जा रहे हैं। ये ही गिर्दा का काम जो आज भी इस दुनिया में जिंदा है और हमेशा रहेगा।

बिष्ट ने कहा कि गिर्दा के गीत आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने उत्तराखंड राज्य आंदोलन, नशा नही रोजगार दो आंदोलन समेत अन्य आंदोलनों के दौरान थे। उन्होंने कहा की गिर्दा अपने आप मे एक विचार थे। जिस अंदाज में सड़क पर चलने वाले आम आदमी के संघर्ष और उसकी पीड़ा को अपने गीतों के माध्यम से स्वर देकर गाते थे। आज हम भी उन्हें उन्हीं के अंदाज में याद कर रहे हैं।

कार्यक्रम का संचालन नीरज भट्ट ने किया। इस मौके पर नारायण थापा, चन्दन बोरा, देवेन्द्र भट्ट, रिक्की, ईश्वर जोशी, जीवन चन्द्र, गोपाल, दीवान राम, रंगकर्मी गोपाल चम्याल, प्रकाश कुमार, देव नेगी, दयाकृष्ण कांडपाल, दिनेश पाण्डे, दयाकृष्ण कठैत, जगदीश, नारायण राम, कुलणा तिवारी, आनन्दी वर्मा, चंपा सुयाल, किरन आर्या, उत्तराखंड छात्र संगठन से दीक्षा सुयाल, भारती पांडे, गीता, अजय मित्र बिष्ट, विमला बोरा, लता पाण्डे, कमला भट्ट, गंगा जोशी समेत अन्य लोग मौजूद रहे।

कौन थे गिरीश चंद्र तिवाड़ी ‘गिर्दा’

गिरीश चंद्र तिवाड़ी ‘गिर्दा’ का जन्म 10 सितंबर 1945 में अल्मोड़ा जिले के ज्योली गांव में हुआ था। गिर्दा ने अपने गीतों, कविताओं से उत्तराखंड के जन आंदोलनों को नई ताकत दी। चिपको, नशा नहीं.रोजगार दो, उत्तराखंड आंदोलन और नदी बचाओ आंदोलन को नए तेवर दिए। उनके गीतों से मिलती ताकत से सोए और निष्क्रिय पड़े लोग भी सोचने पर विवश हो जाते थे।

जनगीतों के नायक

गिरीश चंद्र तिवाड़ी ‘गिर्दा’ उत्तराखंड के एक बहुचर्चित पटकथा, लेखक, गायक, कवि, निर्देशक, गीतकार और साहित्यकार थें गिरीश चंद्र तिवाड़ी उर्फ ‘गिर्दा’ को जनगीतों का नायक भी कहा जाता है। राज्य के निर्माण आंदोलन में अपने गीतों से पहाड़ी जनमानस में ऊर्जा का संचार और अपनी बातों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने का जो हुनर गिर्दा में था। वो सबसे अलहदा था। उनकी रचनाएं इस बात की तस्दीक करती है।

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