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संयुक्त राष्ट्र संघ… संदिग्ध भूमिका का एक गिरोह

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद UNO द्वारा उस पर कई प्रतिबन्ध लगाने की चर्चा है। लेकिन यही UNO उस समय खामोश हो जाता है, जब अमेरिका और ब्रिटेन (Anglo- Sexton नस्ल आधारित गठबंधन ) के हित सामने होते हैं।

फाकलैंड द्वीप समूह दक्षिण अमेरिका में अर्जेंटीना के समीप है। किन्तु यहाँ हजारों मील दूर ब्रिटेन के कब्जे में है ( सन 1833 में ब्रिटेन ने यहाँ कब्ज़ा किया था, उससे पहले यह अर्जेंटीना का हिस्सा था )। सन 1982 में जब अर्जेंटीना ने फाकलैंड पर वापिस कब्ज़ा किया तो ब्रिटेन ने उससे युद्ध छेड़ दिया और कई दिनों की लड़ाई के बाद फाकलैंड वापिस छीन लिया। UNO मूक दर्शक बना रहा। ( फ़्रांस, अमेरिका, न्यूजीलैंड सहित कई देशों ने अर्जेंटीना पर ही प्रतिबन्ध भी लगा दिए।) लेकिन इसी ब्रिटेन ने 1997 में हांगकांग बिना किसी विवाद के चीन को वापिस कर दिया था ,क्योंकि चीन से लड़ना ब्रिटेन के बूते से बाहर था।

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कुवैत किसी समय पर्सियन साम्राज्य का भाग था। बाद में इसका विलय ईराक में हो गया था। सन 1961 में पश्चिमी ताकतों ( ब्रिटेन ) ने इसे ईराक से अलग कर दिया। सन 1990 में ईराक ने ब्रिटेन द्वारा कुवैत को पृथक किये जाने को अमान्य घोषित करते हुए उस पर पुनः कब्ज़ा कर लिया।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे गलत ठहराया और अमेरिका के नेतृत्व वाली संयुक्त सेना ने ईराक पर हमला कर कुवैत को वापिस छुड़ा लिया। ईराक के एक बड़े हिस्से को NO FLY ZONE भी घोषित कर दिया, ताकि इराकी जहाज इस क्षेत्र में उड़ान न भर सकें।

सन पचास के दशक में चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया। तिब्बत के वैध शासक दलाई लामा को देश छोड़ना पड़ा। हजारों तिब्बतियों को मार दिया गया। UNO खामोश ही रहा।

सन साठ के दशक में अमेरिका ने वियतनाम पर हमला किया, जो लगभग एक दशक तक जारी रहा। UNO लापता रहा। अमेरिका पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया।

सन 1979 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में सेना भेज दी, युद्ध एक दशक तक चलता रहा, UNO ने सोवियत संघ की कड़ी निंदा की, नाटो देशों ने सोवियत संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिए।

सन 1970 में पाकिस्तानी तानाशाह याहिया खान ने बांग्लादेश ( तब पूर्वी पाकिस्तान ) में मार्शल ला लगा दिया, दुर्दांत बेरहम जनरल टिक्का खान ( मुख्य सैन्य प्रशासक ) ने बांग्लादेश में जो अत्याचार किये, वह इतिहास में दर्ज है। UNO ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई कारगर कदम नहीं उठाया।

सन 2003 में ईराक पर हमला करने के लिए ब्रिटेन की ख़ुफ़िया संस्थाओं ने एक फर्जी दस्तावेज बनाया ( जिसे सितम्बर डोजियर भी कहा जाता है )। इस दस्तावेज को ब्रिटिश संसद ने पारित किया और ईराक पर हमले की भूमिका बनी ( दस्तावेज के अनुसार सद्दाम के पास WMD थे )। हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के जांच दल को कोई WMD नहीं मिला। बाद में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने आधिकारिक रूप से स्वीकार भी किया कि दस्तावेज जाली था। UNO ने ब्रिटेन और उसके सहयोगी अमेरिका पर फर्जी दस्तावेजों के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया।

अब UNO रूस के खिलाफ प्रतिबन्ध लगाने जा रहा है। मुझे लगता है कि जल्दी ही संसार में एक नयी संस्था बनने जा रही है, जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ का विपरीत गिरोह साबित होगी।

जैसे प्रथम विश्वयुद्ध के बाद बनी लीग ऑफ नेशंस जब अपना काम न कर पाई (इसके सदस्य देश अपने हितों को छोड़ने को तैयार न थे), तो संयुक्त राष्ट्र संघ बनाया गया था। अब शायद कोई नया संगठन बने….

(यह लेखक के अपने विचार है)

 

साभार
मुकेश प्रसाद बहुगुणा

लेखक के बारे में-
(लेखक राजकीय इंटर कॉलेज मुंडनेश्वर, पौड़ी गढ़वाल में राजनीति विज्ञान के शिक्षक है और वायु सेना से रिटायर्ड है। मुकेश प्रसाद बहुगुणा समसामयिक विषयों पर सोशल मीडिया में व्यंग व टिप्पणियां लिखते रहते है।)

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