उत्तराखण्ड के दोनों अंचलों कुमाऊं और गढ़वाल में भादो महीने की संक्रान्ति को ‘घ्यू त्यार’ (त्योहार) मनाया जाता है। गढ़वाल में इसे ‘घी संक्रान्त’ कहते हैं। इस दिन विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। जिनमें पूरी, मॉस के दाल की पूरी व रोटी, बढ़ा, पुए, लौकी, पिनालू के गाबों की सब्जी, ककड़ी का रायता, खीर आदि बनाए जाते है।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन पकवानों के साथ घर का बना हुआ शुद्ध घी का सेवन अनिवार्य तौर पर किया जाता है। जो लोग साल भर कभी भी घी का सेवन नहीं करते हैं, वे भी घ्यूत्यार के दिन एक चम्मच घी अवश्य ही खाते हैं, कुमाऊँ में पिथौरागढ़ व चम्पावत जिलों व बागेश्वर जिले के कुछ क्षेत्रों में यह त्योहार दो दिन मनाया जाता है।
सावन महीने के मसान्त को जहॉ कुछ पकवान बनाए जाते हैं, वहीं संक्रान्ति के दिन पकवानों के साथ ही चावल की गाढ़ी बकली खीर भी बनाई जाती है। जिसमें पकने के बाद खूब घी डाला जाता है। दूसरी जगहों में यह त्योहार केवल संक्रान्ति के दिन ही मनाया जाता है।
घ्यू त्यार (त्योहार) को दिन की बजाय शाम को ही मनाते हैं। यह भी पुरानी मान्यता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता वह अगले जन्म में गनैल ( घौंगा ) बनता है। जिसका जीवन कुछ ही दिनों का होेता है। यह मान्यता क्यों है ? इस बारे में कोई स्पष्ट मत नहीं है। पर घर के शुद्ध घी की तरावट व ताजगी वाला यह लोकपर्व घी खाए जाने की अनिवार्यता के कारण अपनी एक विशिष्ट पहचान तो रखता ही है।
साभार- जगमोहन रौतेला