इंडिया भारत न्यूज़ डेस्क: हाई कोर्ट ने उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों को एकलपीठ के बहाल किए जाने के आदेश को चुनौती देती विधान सभा की ओर से दायर विशेष अपीलों पर गुरुवार को सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए विधान सभा सचिवालय के आदेश को सही ठहराया है। पूर्व में एकलपीठ ने विधानसभा अध्यक्ष के 228 कर्मचारियों के बर्खास्तगी के इस आदेश पर रोक लगा दी थी।
विधानसभा सचिवालय की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि इन कर्मियों की नियुक्ति काम चलाऊ व्यवस्था के लिए की गई थी। शर्तों के मुताबिक, बिना किसी कारण व नोटिस के इनकी सेवाएं कभी भी समाप्त की जा सकती हैं। इनकी नियुक्तियां विधानसभा सेवा नियमावली के विरुद्ध जाकर की गई हैं।
कर्मचारियों का पक्ष
वहीं, कर्मचारियों की ओर से कहा गया था कि उनको बर्खास्त करते समय विधानसभा अध्यक्ष द्वारा संविधान के अनुच्छेद 14 का पूर्ण रूप से उल्लंघन किया है। अध्यक्ष द्वारा 2016 से 2021 तक के कर्मचारियों को ही बर्खास्त किया गया है जबकि ऐसी ही नियुक्तियां विधानसभा सचिवालय में 2000 से 2015 के बीच में भी हुई हैं, जिनको नियमित भी किया जा चुका है. यह नियम सब पर एक समान लागू होना चाहिए था। अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट, कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने एकलपीठ में चुनौती दी थी।
ये है पूरा प्रकरण
उत्तराखंड विधानसभा बैक डोर भर्ती घोटाले के सामने आने के बाद भाजपा-कांग्रेस पर सवाल खड़े हो रहे थे। सवाल इस बात पर खड़े हो रहे थे कि आखिरकार पूर्व विधानसभा अध्यक्षों ने अपने लोगों को नियमों को ताक पर रखकर विधानसभा में भर्ती कैसे करवाया। इसमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वर्तमान में मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की 72 नियुक्तियां भी शामिल थी। सवाल इस बात पर भी खड़े हो रहे थे कि कैसे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने नियमों के विपरीत अपने परिजनों को विधानसभा में नियुक्ति दिलवाई थी।
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