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हिमालय में रहने वाले लोगों का जीवन आसान नहीं: प्रो. शेखर पाठक

अल्मोड़ा: गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल में शुक्रवार को विशेष व्याख्यान श्रृंखला के 8वें व्याख्यान का आयोजन हाइब्रिड मोड में किया गया. यह व्याख्यान पहाड़ फाउंडेशन, नैनीताल के संस्थापक पद्मश्री प्रो. शेखर पाठक द्वारा “यात्राओं के माध्यम से हिमालय को समझना: अस्कोट-आराकोट अभियान के अनुभव 1974-2024” विषय पर दिया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रौद्योगिकी संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व डीन प्रो. के.एस. राव द्वारा की गयी.

कार्यक्रम का शुभारंभ संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल के स्वागत उदबोधन से हुआ. अपने स्वागत उदबोधन में प्रो. नौटियाल ने संस्थान और इसकी क्षेत्रीय इकाइयों द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में किये जा रहे विभिन्न विकासात्मक कार्यों और हितधारकों द्वारा लिये जा रहे लाभों से सबको अवगत कराया तथा संस्थान की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी दी.

अपने व्याख्यान में प्रो. शेखर पाठक ने कार्ल मार्क्स के इस कथन कि “प्रकृति को हम विकास के लिए नष्ट करते जा रहे हैं” पर बल दिया और कहा कि बुनियादी सुविधाओं जैसे स्कूल, कॉलेज, बिजली, संचार और बाज़ार आदि की कमी के कारण हिमालय में रहने वाले लोगों का जीवन आसान नहीं है. उन्होंने पहाड़ों में लोगों के जीवन का अध्ययन करना और उन्हें बेहतर तरीके से जानने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने बताया कि अस्कोट (पिथौरागढ़) का गांव नेपाल सीमा पर पड़ता है और आराकोट (उत्तरकाशी) गांव में समाप्त होता है जो हिमाचल प्रदेश को छूता है. उन्होंने हिमालय को राष्ट्र के लिए आवश्यक बताया तथा हिमालय को बचाने के लिए उत्तराखंड के सुदूर इलाकों में ट्रेक का आयोजन कर लोगों को एकजुट और जागरूक करने की अपील की। प्रो. पाठक ने बताया कि प्रत्येक दशक में जन जागरूकता हेतु इस यात्रा की शुरुआत श्री देव सुमन के जन्मदिन 25 मई को की जाती है.
आगामी 25 मई 2024 से शुरू होने वाले छठा अस्कोट-अराकोट अभियान जो अस्कोट से प्रारम्भ होगा तथा इस यात्रा की योजनाओ से भी सबको अवगत कराया।

प्रो. पाठक ने कहा कि करीब 1150 किमी की इस यात्रा में 36 नदियाँ, 350 गांव, 7 जिले, 16 बुग्याल तथा 20 खरकों की सीमा पार करनी पड़ती है जिसमें प्रकृति को पास से देखने और महसूस करने का मौका मिलता है. उन्होंने पहाड़ के कुछ प्रमुख कार्यक्रम जैसे चिपको आंदोलन, अस्कोट-अराकोट अभियान, ब्रह्मपुत्र अभियान, नंदी कुंड मार्च, काली कुटी धौली रिवर्स आदि से भी सबको अवगत कराया और पहाड़ फाउंडेशन तथा इसके द्वारा उत्तराखण्ड के भूगोल, इतिहास, राजनीति, पारिस्थितिकी और संस्कृति से संबंधित प्रकाशनों की भी जानकारी साझा की.

कार्यक्रम के अतिथि पद्मश्री प्रो. ललित पाण्डे ने कहा कि आधुनिक पीढी अपनी पुरानी सभ्यता तथा रीति रिवाजों को भूलती जा रही है. उन्होंने कहा कि आज पहाड़ पहाड़ के लोगों के लिए मिथ्या मात्र बने हुए हैं जबकि बाहरी लोगों के लिए पर्यटन और आकर्षण का केंद्र बने हैं. उन्होंने युवा पीढ़ी से पहाड़ के लोगों का सामाजिक स्तर बेहतर बनाने के लिए कार्य करने की जरुरत पर बल दिया.

कार्यक्रम के अतिथि निवर्तमान नगरपालिका अध्यक्ष प्रकाश चन्द्र जोशी ने कहा कि प्रो. पाठक की यात्राओं के माध्यम से काफी कुछ आत्मसात करने को मिलता है. उन्होंने इसे स्कूली और युवा पीढ़ी के मध्य अधिक से अधिक प्रचारित करने की अपील की जिससे उनके मन में पहाड़ के प्रति स्नेह पैदा हो. उन्होंने कहा कि नित हो रहे निर्माण कार्य, पिघलते ग्लेशियर, जलवायु परिवर्तन और बदलता परिवेश हम सबके लिए चुनौती बनता जा रहा है. उन्होंने संस्थान और शोधार्थियों से इसके समाधान हेतु अपनी शोध संस्तुतियां प्रस्तुत करने की अपील की.

कार्यक्रम के अतिथि और पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव निरंजन पंत ने कहा कि प्रो. पाठक के इस शोध से संस्थान को शोध हेतु काफी संभावनाएं हैं. कहा कि संस्थान को मिलकर इस दिशा में जनजारूकता और युवा पीढ़ी को प्रेरित करने की आवश्यकता है.

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. के एस राव ने संस्थान तथा इसकी क्षेत्रीय इकाइयों द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में किये जा रहे कार्यों और जनमानस तक उनकी पहुंच की प्रशंसा की. प्रो. राव ने संस्थान को प्रो. शेखर पाठक द्वारा किये गए शोध को अनुसंधान के माध्यम से धरातल पर लाने की अपील की. उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रो में संसाधनों की कमी बनी हुई है युवा पीढ़ी में हिमालयी और ग्रामीण परिवेश में कार्य करने की सोच विकसित करने की आवश्यकता है. उन्होंने शोधार्थियों को प्रकृति के नजदीक जाकर महसूस कर सीखने और आत्मसात करने की अपील की.

कार्यक्रम का संचालन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जे.सी. कुनियाल तथा समापन संस्थान की गढ़वाल इकाई के वैज्ञानिक डॉ. अरुण जुगरान के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ.

ये रहे मौजूद-

इस कार्यक्रम में वीपीकेएस, अल्मोड़ा के पूर्व निदेशक डॉ. जे.सी. भट्ट, जेएनयू विवि दिल्ली के प्रो. के जी सक्सेना, पर्यावरण संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. जी सी एस नेगी, प्रो. जया पाण्डे, प्रो. नेहाल फारूकी, डॉ. सुरेश राणा, कमल जोशी, अजय रस्तोगी, रघु तिवारी, सहित विभिन्न संस्थाओ के प्रतिनिधियों समेत संस्थान मुख्यालय, गढ़वाल क्षेत्रीय केंद्र, हिमाचल क्षेत्रीय केंद्र, सिक्किम क्षेत्रीय केंद्र, अरुणाचल क्षेत्रीय केंद्र तथा लद्दाख क्षेत्रीय केंद्र के करीब 250 कर्मचारियों और शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया।

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