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अल्मोड़ा: गुरिल्लों के आंदोलन को 14 साल पूरे, आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने का लिया संकल्प

अल्मोड़ा: नौकरी, पेंशन एवं अन्य सुविधाओं को लेकर आंदोलनरत गुरिल्लों के धरने का आज 14 साल पूरे हो गए है। गुरिल्लों ने आंदोलन के 15 वें वर्ष की शुरूआत गुरुवार को गैराड़ गोलज्यू मंदिर में सरकार की बुद्धि-शुद्धि के लिए यज्ञ व मंदिर में पूजा-अर्चना कर की। इस दौरान गुरिल्लों ने आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने का संकल्प लेते हुए धरना जारी रखने की घोषणा की।

इस अवसर पर गुरिल्लों ने कहा कि विगत 14 वर्षों के आंदोलन के दौरान केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार गुरिल्लों को केवल गुमराह करती रही है। केन्द्र सरकार गुरिल्लों का सत्यापन करने, गुरिल्लों के समायोजन का प्रस्ताव तैयार करवाने के बाद चुप बैठी है। राज्य सरकार अपने ही शासनादेशों का अनुपालन नहीं कर रही है।

गुरिल्लों ने कहा कि उत्तराखंड शासन में अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी द्वारा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ उच्चस्तरीय बैठक कराये जाने के आश्वासन पर भी टाला मटोली की जा रही है। गुरिल्लों ने गैराड़ डाना गोलज्यू मंदिर में गुहार लगाई और आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने का संकल्प लेते हुए धरना पूर्ववत जारी रखने की घोषणा की है।

कार्यक्रम में ब्रह्मानंद डालाकोटी, शिवराज बनौला, खड़क सिंह पिलख्वाल, ललित मोहन सनवाल, प्रेम बल्लभ कांडपाल, विजय जोशी, उदय महरा, भगवत भोज, भीम राम, बिशन सिंह नेगी, नारायण राम, केवल राम, गोविंद राम, त्रिलोक राम, मोहन राम, उमेद राम, इन्द्रा तिवारी, रेखा आर्या, शांति देवी, कविता शाह, दीपा शाह, विशन राम आदि मौजूद रहे।

 

कौन है गुरिल्ला?

सन 1962 में भारत-चीन सीमा पर दुश्मनों से निपटने के लिए तत्कालीन सरकार ने गुरिल्ला तैयार किए थे और इन्ही में से एसएसबी में भर्ती किए जाते थे। लेकिन सन 2000 में सरकार ने गुरिल्लों को एसएसबी में भर्ती करना बंद कर दिया। चीन से लगी देश की सीमा पर स्थित स्थानीय निवासियों को चीन से मुकाबला करने के लिए उन्हें आवश्यक अस्त्र-शस्त्र की ट्रेनिंग, फ़ौज पहुंचने से पहले चीन की सेना को रोकने और भारत की सेना के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए इसकी स्थापना की गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने 1962 की पराजय के कटु अनुभवों से सीख लेकर इसकी स्थापना की योजना बनाई थी। इसके लिए दुनियाभर में मौजूद सुरक्षा व्यवस्था का अध्ययन कराया गया और इसके बाद चीन के बॉर्डर से लगे 18 वर्ष से ऊपर के प्रत्येक व्यक्ति को अस्त्र-शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग दी गई।

विशेष सुरक्षा बल के नाम से स्थापित इस सैन्य-बल को आज के दिन सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के नाम से जाना जाता है। 2002 की वाजपेयी सरकार के द्वारा इसे बंद कर, प्रशिक्षित गुरिल्लाओं का समायोजन अन्य प्रांतीय बलों में करने की बात कही गई। इसमें भारत तिब्बत सीमा सुरक्षा बल सहित अन्य बल शामिल हैं। कुल 2 लाख के करीब इन गुरिल्लाओं की संख्या थी, जिसमें करीब एक लाख को समायोजित किया गया। बाकी के एक लाख गुरिल्लाओं का समायोजन नहीं किया गया। इन्हें भी समायोजित किये जाने की मांग को लेकर 2006 से ब्रह्मानंद डालाकोटी इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने देश में दूर-दराज के इलाकों को संगठित किया। वर्तमान में वे 17 राज्यों का नेतृत्व संभाल रहे हैं, जिसमें करीब 1.5 लाख गुरिल्ला बल के लोग आज भी अपनी न्यायोचित मांग की लड़ाई लड़ रहे हैं।

 

 

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