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पर्यावरण संस्थान में आजीविका के अवसर पर 3 दिवसीय कार्यशाला शुरू, चीड़ की पत्तियों से उत्पाद बनाने का दिया प्रशिक्षण

 

अल्मोड़ा: गोविंद बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल के ग्रामीण तकनीकी परिसर में द हंस फॉउन्डेशन द्वारा वनाग्नि श्मन एवं रोकथाम परियोजना के अन्तर्गत उत्तराखण्ड में नॉन टिम्बर फारेस्ट प्रोडक्ट्स (NTFPs) पर आधारित आजीविका के अवसर (मुख्य रूप से चीड़ एवं रिंगाल) पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की जा रही है। जिसमें हंस फॉउन्डेशन के अल्मोड़ा के अलावा बागेश्वर, टिहरी तथा पौड़ी से आये कार्यकर्ता प्रतिभाग कर रहे हैं।

प्रशिक्षण कार्यशाला का आरम्भ करते हुए संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं ग्रामीण तकनीकी परिसर के समन्वयक डा. अशोक साहनी ने द हंस फॉउन्डेशन से आये सभी कार्यकर्ताओं का स्वागत कर प्रशिक्षण की रूपरेखा देते हुए संस्थान द्वारा इस क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों की विस्तृत जानकारी दी।

 

 

इस अवसर पर उपस्थित संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं जैव-विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन विभाग के केंन्द्र प्रमुख डा.आइ.डी. भट्ट ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि उत्तराखंड के निवासियों के पास प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है। हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आजीविका संवर्धन में करना चाहिये।

डॉ भट्ट ने वनाग्नि से हर वर्ष होने वाले जैव विविधता के नुकसान पर चिंता व्यक्त की और कहा कि चीड़ वृक्ष से फैलने वाली आग को जंगलों से चीड़ की पत्तियों का उपयोग कई प्रकार के उत्पाद बना कर कम किया जा सकता है। इस तरह से वनाग्नि में भी कमी आयेगी साथ ही ग्रामीण लोगों की आजीविका भी बढ़ेगी। उन्होंने चीड़ की पत्तियों द्वारा अनेक उत्पाद जैसे बायो ब्रिकेट, आकर्षक कलाकृतियाँ तथा सुखे पिरूल से हस्त निर्मित कागज तैयार करना इत्यादि के बारे मे भी जानकारी दी।

कार्यक्रम के तकनीकी सत्र मे संस्थान की वैज्ञानिक डा. हर्षित पंत जुगरान के द्वारा पिरूल से जैव ईधन (बायोब्रिकेट) तैयार करने की विस्तारपूर्वक जानकारी दी गयी। जिसके बाद संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं ग्रामीण तकनीकी परिसर के समन्वयक डा. एस.सी. आर्य ने संस्थान द्वारा चलायी जा रही विभिन्न परियोजनाओं के अन्तर्गत स्थानीय ग्रामीणों द्वारा पर्यावरण अनुकूल उत्पाद तैयार करने के प्रयासों के बारे मे जानकारी दी।

इस अवसर संस्थान के वरिष्ठ तकनीशियन डा. सुबोध ऐरी द्वारा पिरूल के कारण जंगल मे आग लगने से जैव विविधता को हो रहे नुकसान तथा पादप प्रजातियों के प्रभावों के बारे मे जानकारी दी।

प्रशिक्षण के द्वितीय तकनीकी सत्र मे एन.आर.एल.एम की प्रशिक्षिका किरन चौधरी एवं ममता अधिकारी ने पिरूल से विभिन्न दैनिक उपयोग कि वस्तुएं जैसे – टोकरी, गुलदस्ता, पायदान, इत्यादि बनाने का प्रयोगात्मक प्रशिक्षण दिया।

 

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