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उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण देने को हाईकोर्ट में चुनौती, HC ने सरकार व आयोग से मांगा जवाब

नैनीताल। उत्तराखंड राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से उत्तराखंड सम्मिलित सिविल अधीनस्थ सेवा परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को अनारक्षित श्रेणी में 30 प्रतिशत आरक्षण देने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और राज्य लोक सेवा आयोग को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई 22 अगस्त को होगी।

इस परीक्षा के लिए आवेदन कर चुकी हरियाणा समेत उत्तर प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने सरकार की ओर से उत्तराखंड की महिला अभ्यर्थियों को क्षैतिज आरक्षण देने को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है।

बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ में हरियाणा के भिवानी निवासी पवित्रा चौहान व अन्य की याचिका पर सुनवाई हुई। महिला अभ्यर्थियों का कहना है कि आयोग ने पिछले साल दस अगस्त को विज्ञापन जारी किया था । 26 मई 2022 को प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आया। परीक्षा में अनारक्षित श्रेणी की दो कट ऑफ लिस्ट निकाली गईं। उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों की कट ऑफ 79 थी। याचिकाकर्ता महिलाओं का कहना था कि उनके अंक 79 से अधिक थे, मगर उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि शासनादेश के अनुसार, उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जो असंवैधानिक है।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने कोर्ट को बताया कि 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के शासनादेश के अनुसार, उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जो असंवैधानिक है। संविधान के अनुच्छेद-16 के अनुसार आवास के आधार पर कोई राज्य आरक्षण नहीं दे सकता, यह अधिकार केवल संसद को है। राज्य केवल आर्थिक रूप से कमजोर व पिछले तबके को आरक्षण दे सकता है। कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद राज्य सरकार व राज्य लोक सेवा आयोग को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए

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