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अल्मोड़ाः पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने की प्रतिबद्धता है ‘ओण दिवस’… इस दिन होगा कार्यक्रम का आयोजन

अल्मोड़ाः जिले में वनों की आग एक बड़ी समस्या है। हर साल लाखों हेक्टेयर जंगल दावानल की भेंट चढ़ जाते हैं। वनों को आग से बचाने के लिए जिले में हर साल ओण दिवस मनाने का फैसला लिया गया है। इसी क्रम में आगामी 1 अप्रैल को हवालबाग विकासखंड के धामस गांव में ओण दिवस मनाया जाएगा। इस कार्यक्रम में पिछले डेढ़ दशकों से स्याही देवी शीतलाखेत क्षेत्र में जंगलों को आग से सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली महिलाओं तथा आग बुझाने में सहयोग करने वाले प्रथम पंक्ति के फायर फाइटर्स को प्लस एप्रोच फाउंडेशन, नई दिल्ली द्वारा सम्मानित किया जायेगा। इस कार्यक्रम के आयोजन में ग्रामोद्योग विकास संस्थान, ढैंली, गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल, नौला फाउंडेशन तथा जंगल के दोस्त समूह भी सहयोग कर रहे है।

स्याही देवी विकास मंच शीतलाखेत के संस्थापक संयोजक गजेन्द्र पाठक ने पत्रकार वार्ता में कहा कि, उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में जंगलों में आग लगने की घटनाओं से जल स्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को अपूर्णनीय हानि हो रही है। जंगलों में आग की घटनाओं को रोकने, बुझाने में जनता का सहयोग बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि जंगलों में आग लगने के कारणों में एक कारण ओण भी है। ओण जलाने की परंपरा को समयबद्ध और व्यवस्थित कर वनाग्नि घटनाओं में 90 फीसदी तक की कमी लाई जा सकती है।

पाठक ने कहा कि खरीफ की फसलों के लिए खेत तैयार करते समय महिलाओं द्वारा खेतों में, मेड़ में उग आई झाड़ियों, खरपतवारों को काटकर, सुखाकर जलाया जाता है। जिसे प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में ओण, आड़ा, केड़ा जलाना कहते है। आमतौर पर महिलाएं इस काम में सतर्कता रखती हैं मगर की बार लापरवाही, जल्दबाजी में ओण के ढेर को जलाने के बाद अच्छी तरह बुझाने का काम न होने से हवाओं और घास, पीरूल का सहारा लेकर आग निकटवर्ती वन पंचायत, सिविल, आरक्षित वन क्षेत्र में प्रवेश कर बड़ी अग्नि दुर्घटनाओं को जन्म देती हैं।

पाठक ने कहा कि वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं से वन्य जीवों के आहार और आवास दोनों नष्ट हो रहे हैं और खाद्य श्रृंखला टूट रही है। जिसका परिणाम निरंतर बढ़ रहे मानव-वन्य जीव संघर्ष के रूप में देखा जा सकता है। वनाग्नि घटनाओं से पैदा लाखों टन कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में जाकर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही है। साथ ही जंगलों की आग से पैदा ब्लैक कार्बन हिमालयी ग्लेशियरों के लिए भी खतरा बन रहा है। यदि हमें वर्तमान पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों के अच्छे भविष्य के लिए जल स्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करनी है तो सबसे पहले वनाग्नि की घटनाओं को को रोकने के प्रयास करने की जरूरत है।

पाठक ने कहा कि पिछले वर्ष ग्राम सभा मटीला, सूरी में 1 अप्रैल को प्रथम ओण दिवस का आयोजन किया गया था। जिसके अच्छे परिणामों को देखते हुए जिलाधिकारी वंदना ने जिले में प्रतिवर्ष 1 अप्रैल को ओण दिवस मनाने के आदेश दिए थे और इस वर्ष दूसरा ओण दिवस मनाया जा रहा है। उन्होंने सभी ग्रामीणों से अपील की है कि वो प्रत्येक वर्ष ओण जलाने की कार्रवाई 31 मार्च से पहले पूरी कर लें। अप्रैल, मई और जून के महीनों में जब चीड़ में पतझड़ होने के कारण जंगलों में भारी मात्रा में पीरूल की पत्तियों जमा हो जाती है। तापमान में वृद्धि होने तथा तेज हवाओं के कारण जंगल आग के प्रति बेहद संवेदनशील हो जाते है। उस समय जंगलों को आग से सुरक्षित रखा जा सके।

प्लस एप्रोच फाउंडेशन के समन्वयक मनोज सनवाल ने बताया कि प्लस एप्रोच फाउंडेशन एक पंजीकृत गैर सरकारी संगठन है, जो समाज में सकारात्मक सोच के साथ लोगों की प्रगति, समृद्धि और शांति के लिए काम कर रहा है ताकि सभी को खुशी मिल सके और सभी सफल हों। प्लस एप्रोच फाउंडेशन ने शीतलाखेत के पास मटीला गांव को गोद लिया है और इसे सशक्त, सकारात्मक और आत्मनिर्भर गांव बनाने के रुप में परिवर्तित करने के लिए काम किया जा रहा है। गांव में बच्चों के शैक्षणिक विकास के लिए रेमेडियल क्लासेज, कंप्यूटर क्लासेज का संचालन किया जा रहा है। महिलाओं के लिए सिलाई कढ़ाई प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया है। इसके अलावा निर्धन परिवारों के लिए विदुषी विवाह कन्यादान तथा सपनों का घर योजना चलाई जा रही है।

प्रेस वार्ता में ऑर्गेनिक्स इंडिया के सेवानिवृत्त निदेशक आर.डी जोशी, जंगल के दोस्त के नरेंद्र बिष्ट, नवीन टम्टा आदि मौजूद रहे।

 

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