अल्मोड़ा: लोक प्रबंध विकास संस्था द्वारा पंचायतीराज दिवस के अवसर पर इनाकोट बसोली में ‘ग्राम स्वराज की स्थापना में पंचायतों की भूमिका, चुनौतियां एवं संभावनाएं’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई।
गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज व्यवस्था के जरिये स्थानीय स्वशासन की कल्पना की गई थी। यह माना गया था कि जनता के पास वे सारे अधिकार होंगे, जिससे वे विकास की प्रक्रिया को अपनी जरूरत और अपनी प्राथमिकता के आधार पर मनचाही दिशा दे सकें। इसके मूल में सत्ता के विकेन्द्रीकरण की ऐसी भावना निहित थी, जिसमें विकास हेतु नियोजन, क्रियान्वयन एवं निगरानी में स्थानीय लोगों की विभिन्न स्तरों पर भागीदारी सुनिश्चित हो। लेकिन इस संशोधन के 30 वर्ष बीत जाने के बाद भी पंचायतें ग्राम स्वराज की मूल अवधारणा से कोसों दूर हैं।
कहा कि योजना क्रियान्वयन की इकाई मात्र बनी हुई हैं। यही कारण है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, जंगली जानवरों का आतंक, महिलाओं का कार्यबोझ, बच्चों को सुरक्षा तथा शराब जैसे मुद्दे जो ग्रामीण जनता को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं कभी भी पंचायतों में चर्चा के बिन्दु नहीं बन पाते हैं।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि आज पंचायतें तमाम परेशानियों से जूझ रही है। जी.पी.डी.पी. ढांचागत विकास पर केन्द्रित हो रही है। बिना बजट के मुद्दे उनमें शामिल नहीं हो पा रहे हैं। मजदूरी पर क्षेत्र में प्रचलित मजदूरी से काफी कम है। ग्राम विकास के अधिकांश कार्य मनरेगा के तहत किये जाने हैं, लेकिन एम.एम.एस. की बाध्यता के चलते कार्य करना कठिन हो रहा है। ब्लाक में कर्मचारियों की भारी कमी है। इन समस्याओं के समाधान के साथ ही ग्राम सभा के सशक्त होने पर ही पंचायत मजबूत हो सकती है।
गोष्ठी को ग्राम प्रधान दीप नारायण भाकुनी, महेश कुमार, ईश्वर जोशी, बालम सिंह सुयाल, देव सिंह पिलख्वाल, मंदन सिंह बिष्ट, चंपा मेहता, दीप्ति भोजक, किशोर तिवारी, क्षेत्र पंचायत सदस्य राजेन्द्र प्रसाद, कृष्ण कुमार, संसाधन पंचायत की भावना लोहनी, रेखा नगरकोटी, तारा नगरकोटी, ममता भंडारी, सरपंच बहादुर मेहता, डुंगर सिंह भाकुनी, ए.पी एफ के रवि आदि ने संबोधित किया। गोष्ठी में 18 ग्राम पंचायतों के 152 लोगों ने प्रतिभाग किया।
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