अल्मोड़ा: एसएसजे परिसर के हिंदी विभाग व अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर ‘प्रेमचंद का कालजयी साहित्य’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सतपाल सिंह बिष्ट, कार्यक्रम संयोजक प्रो जगत सिंह बिष्ट, कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो प्रवीण सिंह बिष्ट, मुख्य वक्ता प्रो देव सिंह पोखरिया, डॉ तेजपाल सिंह आदि ने दीप जलाकर संगोष्ठी का शुभारंभ किया। कार्यक्रम आयोजकों द्वारा अतिथियों को प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया।
कार्यक्रम संयोजक के रूप में पूर्व कुलपति, संकायाध्यक्ष कला प्रो जगत सिंह बिष्ट ने संगोष्ठी के विषय से परिचय कराते हुए प्रेमचंद के साहित्य पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद विश्व साहित्य की धरोहर हैं। उनके उपन्यास एवं कथा साहित्य का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि प्रेमचंद ने कहानी एवं उपन्यास विधा के माध्यम से जीवन की एक तरह से आलोचना की। उन्होंने काल्पनिक धरातल से हटकर वास्तविक धरातल को देखा और समाज के वास्तविक रूप को प्रस्तुत किया। उन्होंने जो पीड़ा सहन की है, उसी को अपने साहित्य में लिखा है। प्रेमचंद की रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर है। उनकी कहानियों में समाज के प्रति सूक्ष्म चिंतन दिखाई देता है। उनके साहित्य में स्त्री विमर्श और सामाजिक जीवन का यथार्थ दिखाई पड़ता है।
मुख्य वक्ता प्रो देव सिंह पोखरिया ने प्रेमचंद के कृतित्व पर विस्तार से दृष्टि डाली। उन्होंने कहा कि 1900 के बाद हिंदी की अलग अलग विधाओं में जयशंकर प्रसाद, रामचंद्र शुक्ल और प्रेमचंद ने कार्य किया है। तीनों ही अपने अपने समय के एक युग रहे हैं। उन्होंने माधुरी, हंस, मर्यादा, जागरण, हंस पत्रिकाओं के माध्यम से सजग पत्रकारिता की। उनके उपन्यासों में सामाजिक चिंतन दिखाई पड़ता है। उनके साहित्य में यथार्थमूलक आदर्शवाद था। वे भारतीय साहित्य के प्रतीक हैं।
कुलपति प्रो सतपाल सिंह बिष्ट ने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से जीवंतता आती है। प्रेमचंद ने गरीबों, पिछड़ों की आवाज को मुखर किया है। उन्होंने शोषित समाज की भयावह स्थितियों पर लेखन किया है। उनके लेखन से समाज की खाईयां कम हुई हैं। कुलपति प्रो सतपाल सिंह बिष्ट ने आगे कहा कि प्रेमचंद समाज को बांटना नहीं चाहते थे। वे मानवता के पक्षधर रहे हैं। उनके लेखन से सीख लेते हुए रचनाएं लिखने की जरूरत है। उन्होंने हिंदी विभाग के शिक्षकों को भी अपने वरिष्ठ सहयोगियों की भांति साहित्य क्षेत्र में उत्कृष्ट मानक स्थापित करने को प्रेरित किया। कुलपति प्रो बिष्ट ने कार्यक्रम के आयोजकों के साथ अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के सदस्यों को बधाइयाँ दी।
परिसर निदेशक प्रो प्रवीण सिंह बिष्ट ने कहा कि प्रेमचंद ने आम जनमानस की पीड़ा को पत्रिकाओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। उनके योगदान को न हम भूले है ना कभी भुलाया जा सकता है।
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के संदीप ने फाउंडेशन के विषय में जानकारी दी। संगोष्ठी के बाद चित्र प्रदर्शनी, क्विज एवं वीडियो क्लिप द्वारा प्रेमचंद की रचनाओं का प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ तेजपाल सिंह ने किया।
कार्यक्रम में अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो शेखर जोशी, कुलानुशासक डॉ. नंदन सिंह बिष्ट, डॉ. गीता खोलिया, डॉ. ममता पंत, डॉ माया गोला, डॉ. बचन लाल, डॉ. आशा शैली, डॉ. धनी आर्या, डॉ बलवंत कुमार, प्रो शालिमा तबस्सुम, प्रो. सोनू द्विवेदी, प्रो. मधुलता नयाल, डॉ. सबीहा नाज, जयवीर सिंह नेगी, विनीत कांडपाल, लक्ष्मण वृजमुख, देब राम, डॉ भुवन चन्द्र, डॉ. श्वेता चनियाल, डॉ. लता आर्या, डॉ. कालीचरण, डॉ. चंद्रप्रकाश फुलोरिया, डॉ. मनोज बिष्ट, डॉ ललित जोशी, संदीप, रवि, मुक्ता साह, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के सदस्यों के साथ परिसर के सभी विभागों के विद्यार्थी, शिक्षक, कैडेट्स एवं शोधार्थी मौजूद रहे।