इंडिया भारत न्यूज डेस्क: उत्तराखंड की डबल इंजन की सरकार भले ही विकास के नग्मे गा रही हो, लेकिन हकीकत कोसो दूर है। सरकार व सिस्टम को मुंह चिढ़ाती एक तस्वीर प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी चमोली जिले से सामने आई है। इस तस्वीर ने सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं के तमाम दावों की पोल खोल कर रख दी। आप भी इस तस्वीर को देखकर अंदाजा लगा सकते है कि आजाद भारत में आज भी किस तरह पहाड़ के बाशिंदें स्वास्थ्य व सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकारी उदासीनता का दंश झेल रहे हैं।
उत्तराखंड में लचर स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। आए दिन जहां राज्य के अलग-अलग पर्वतीय जिलों से मरीजों को डोली, डंडी-कंडी के सहारे अस्पताल पहुंचाने की तस्वीरें सामने आती रहती हैं। दूसरी ओर चुनाव के समय बड़े-बड़े दावे करने वाले व पहाड़ की भोली भाली जनता को कोरे आश्वासन देने वाले सरकार के नुमाइंदे अपने वायदों को भूल जाते हैं।
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पहाड़ का दर्द: यहां 30 किमी पैदल चलकर ग्रामीणों ने बीमार महिला को डोली से पहुंचाया अस्पताल
चमोली जिले के दशोली ब्लाक के दूरस्थ गांव पाणा गांव की 55 वर्षीय आनंदी देवी पत्नी स्व अमर सिंह की अचानक तबीयत बिगड़ गई। मरता क्या न करता देख ग्रामीणों ने पालकी की डंडी-कंडी बनाकर 10 किलोमीटर पैदल चलकर जिला चिकित्सालय गोपेश्वर पहुंचाया। ग्रामीणों ने बताया कि ऐसी घटनाएं इससे पहले भी कई बार हो चुकी है, जब स्थानीय युवाओं ने गर्भवती महिलाओं व घायलों, बुजुर्गों को इसी तरह से कई चुनौतियों का सामना करते हुए अस्पताल पहुंचाया जाता है। सरकार के नुमाइंदे हर बार क्षेत्र के लोगों को सड़क का आश्वासन देते हैं, लेकिन गांव तक सड़क अभी तक भी नहीं पहुंच पाई है। सड़क को लेकर ग्रामीणों ने आंदोलन भी किया, लेकिन उसके बावजूद भी आज तक गांव में सड़क नहीं पहुंच पाई है।
सामाजिक कार्यकर्त्ता मनवर सिंह का कहना है कि बाईपास का कार्य भी चार महीने से बंद पड़ा हुआ है। शासन और प्रशासन के सामने ग्रामीणों की ओर से लगातार पत्राचार किया जाता रहा है, लेकिन उनकी समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है। वे अब अपने को लाचार महसूस कर रहे हैं। बीमार और गर्भवती महिलाओं को बड़ी चुनौतियों के साथ ग्रामीण जान जोखिम में डालकर किसी तरह से चिकित्सालय पहुंचाते हैं, मगर शासन-प्रशासन फिर भी मौन है।
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