इंडिया भारत न्यूज डेस्क: उत्तराखंड राज्य को बने दो दशक से अधिक का समय हो गया। पहाड़ के बाशिंदों के सामने जहां दम तोड़ती स्वास्थ्य सेवा, बदहाल शिक्षा व्यवस्था, बेरोजगारी, मूर्छित सिस्टम समेत कई पहाड़ जैसी चुनौतियां हैं वही, मानव-वन्यजीव संघर्ष के बढ़ने के बाद हिंसक वन्यजीव लोगों की मौत का सबब बन रहे है। गुलदार आए दिन जिगर के टुकड़ों को अपना शिकार बना रहे है, मां-बाप खून के आंसू रोने को अभिशप्त है। बावजूद इसके मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए न तो वन विभाग के पास कोई ठोस नीति नजर आ रही है और न ही सरकार के नुमाइंदों के पास पहाड़ के लोगों की इस पीड़ा को देखने की फुर्सत है। गुलदार के बढ़ते हमलों को रोकने में नाकाम सरकार महज मुआवजा देने तक सीमित रह गई है।
ताजा मामला उत्तराखंड के श्रीनगर का है। ढिकाल गांव निवासी गणेश नेगी की 4 साल की बेटी आइशा आंगन में अपनी दादी की गोद में बैठी थी। अचानक घात लगाए गुलदार झपट्टा मारकर मासूम को खेतों की ओर ले गया। लोगों ने शोर किया तो गुलदार वहां से भाग पड़ा। घर से कुछ ही दूरी पर मासूम का क्षत-विक्षत शव बरामद हुआ है। इस घटना के बाद लोगों में भयंकर आक्रोश है। उधर, ग्रामीणों ने गुलदार को आदमखोर घोषित किए जाने व मारे जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि जब तक इसके आदेश जारी नहीं होंगे, बच्ची का शव नहीं उठाया जाएगा।
ढिकाल गांव के पूर्व प्रधान चंद्र सिंह नेगी ने बताया कि गुलदार पूर्व में कई मवेशियों को अपना निवाला बना चुका है। गुलदार आए दिन क्षेत्र में दिखाई दे रहा था। वन विभाग के अधिकारियों को इससे अवगत कराया गया था। लेकिन कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
सूबे का कोई ऐसा इलाका नहीं जहां मानव व वन्यजीव के बीच जंग न हुई हो। कुमाउं हो या फिर गढ़वाल हर जगह गुलदार की दहशत है। आबादी के इर्द-गिर्द चप्पे-चप्पे पर गुलदार मौत बनकर लोगों की जान ले रहा है। खासतौर पर महिलाओं व बच्चों के लिए गुलदार मुसीबत बन चुके हैं। बावजूद इसके सरकार इंसानों का खून पी रहे गुलदारों से लोगों को बचाने में असहाय बनी हुई है।