अल्मोड़ा: गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (Govind Ballabh Pant National Institute of Himalayan Environment, almora) ने आज अपनी स्थापना के 35 वर्ष पूरे कर लिए है। वर्ष 1988-89 में स्थापित यह प्रतिष्ठित संस्थान भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के शताब्दी वर्ष समारोह के दौरान अस्तित्व में आया। 10 सितम्बर यानि रविवार को संस्थान कोसी, कटारमल में अपना 29वां वार्षिक दिवस समारोह मनाएगा।
गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तत्वावधान में एक स्वायत्तशासी निकाय के रूप में कार्य करता है। संस्थान का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाना, एकीकृत प्रबंधन रणनीतियों को आकार देना और उनकी प्रभावशीलता को प्रदर्शित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संस्थान प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और विभिन्न भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरणीय मुद्दों के विकास को बढ़ावा देता है।
अपनी स्थापना से अब तक संस्थान ने परिश्रमपूर्वक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया है। अनुसंधान एवं विकास आधारित पहल विकसित की है जो सामाजिक, सांस्कृतिक, पारिस्थितिक, आर्थिक और भौतिक प्रणालियों के बीच संबंधों को सुसंगत बनाता है। ऐसे सम्बन्धों से भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में स्थिरता की दिशा में मार्ग प्रशस्त होता है।
ये हैं संस्थान की मुख्य उपलब्धियां-
संस्थान की मुख्य उपलब्धियों में हिमालयी क्षेत्रों में वन संसाधनों और पौधों की जैव विविधता पर ध्यान केंद्रित करने वाली टास्क फोर्स-3 परियोजना के चरण 1 और 2 का सफल कार्यान्वयन उल्लेखनीय है। इस प्रयास के माध्यम से संस्थान ने एक व्यापक वन संसाधन डेटाबेस तैयार किया है। साथ ही कार्बन स्टॉक और पृथक्करण एवं पूर्व जलवायु पुनर्निर्माणों का संचालन तथा दीर्घकालिक पारिस्थितिक एवं वन क्षेत्रों और उच्च हिमालयी क्षेत्रों के स्थानीय समुदायों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए सशक्त किया है।
इसके अलावा संस्थान ने नीति आयोग द्वारा अनुशंसित केंद्रीय डेटाबेस प्रबंधन एजेंसी (सीडीएमए) के कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो पर्यावरण, जैव विविधता, जनसांख्यिकी, सामाजिक, आर्थिक, संस्कृति और विविध डेटा एवं जानकारी के लिए एक भंडार के रूप में कार्य करता है। उपयोगकर्ता अनुकूल वेब पोर्टल के माध्यम से इसे हितधारकों के लिए सुगम बनाया गया। इससे हिमालयी क्षेत्रों में नीति निर्माण और सतत विकास प्रणालियों में उनके उपयोग की सुविधा मिलने के संभावना प्रबल होती है।
संस्थान ने प्रसार प्रोटोकॉल तैयार कर उनकी न्यूट्रास्यूटिकल और फार्मास्युटिकल क्षमता की खोज की है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत कर किसानों की आय बढ़ाने के लिए उनकी खेती को बढ़ावा देकर औषधीय पौधों के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है।
हिमालयी क्षेत्रों के 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में साइट विशिष्ट पायलट प्रदर्शन मॉडल को लागू कर खराब भूमि को पुनर्जीवित करने के लिए पुनर्स्थापन अवसर मूल्यांकन पद्धति (आरओएएम) को अपनाया है। हिमालयी झरनों के मानचित्रण और पुनर्जीवन के लिए महत्वाकांक्षी जल अभयारण्य कार्यक्रम के तहत संस्थान ने 11 हिमालयी राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में व्यापक ब्लॉक स्तरीय जल की कमी का मानचित्रण भी किया है। इसके अतिरिक्त इन क्षेत्रों में स्थानिक प्रारूपों में 6124 झरनों की एक सूची भी बनाई है, और भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में 12 साइटों पर झरनों को पुनर्जीवित करने के लिए एक बहु संस्थागत पहल भी शुरू की है।
संस्थान के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज (एनएमएचएस) ने जल सुरक्षा, आजीविका वृद्धि, अपशिष्ट से धन पहल, जंगल की आग प्रबंधन और वैकल्पिक निर्माण प्रौद्योगिकियों जैसे विविध डोमेनों में फैली कुल 182 अनुसंधान परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इन प्रयासों के माध्यम से 24 पेटेंट, 53 मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी), मनरेगा के माध्यम से 7 कार्यान्वित मॉडल, 7 रिंगाल निर्मित उत्पादों के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) टैगिंग, मोबाइल कोल्ड मिक्सचर कम पेवर मशीन के लिए एक प्रोटोटाइप और अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है।
पिछले कुछ वर्षों में संस्थान ने अपने अनुसंधान और विकास प्रयासों में उल्लेखनीय प्रगति का प्रदर्शन किया है और हिमालयी क्षेत्रों पर उच्च गुणवत्ता वाले करीब 925 शोध पत्रों, जिनका इम्पेक्ट फैक्टर 1895 है, का प्रकाशन कर वैश्विक स्तर पर अपनी अनूठी पहचान बनायी है।
हिमालय के संरक्षण और सतत विकास में महत्वपूर्ण भूमिका
गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान वर्तमान में डायरेक्टर प्रोफेसर सुनील नौटियाल के कुशल नेतृत्व में हिमालय के संरक्षण और सतत विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और विकेन्द्रीकृत रूप में सम्पूर्ण हिमालय के विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों में अपने 5 क्षेत्रीय केंद्रों (गढ़वाल क्षेत्रीय केन्द्र, हिमाचल क्षेत्रीय केन्द्र, सिक्किम क्षेत्रीय केन्द्र, ईटानगर क्षेत्रीय केन्द्र और लद्दाख क्षेत्रीय केन्द्र) तथा 4 थीमेटिक केंद्रों जिनकी अध्यक्षता ई. किरीट कुमार, डॉ. जे.सी. कुनियाल, डॉ. आई.डी. भट्ट तथा डा. पारोमिता घोष के नेतृत्व में होती है, हिमालय के सतत विकास शोध और विकास कार्यों में अपना सर्वोच्च देने के लिए सदैव प्रयासरत है।