अल्मोड़ा: सरकार व उसके मंत्री सरकारी स्कूलों में बेहतर व्यवस्था होने के दावे करते नहीं थकते। लेकिन मौजूदा समय में उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों की हालत काफी दयनीय हो चुकी हैं। स्कूलों में पढ़ाने के लिए न मानक के अनुरूप शिक्षक हैं और न बेहतर व्यवस्थाएं। इसके लिए सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधि बराबर जिम्मेदार हैं।
ऐसे में अभिभावकों का अब सरकारी विद्यालयों से लगातार मोहभंग होते जा रहा है। अगर शिक्षण व्यवस्था का यही हाल रहा और सरकार व उनके नुमाइंदे इसी तरह अनदेखी करते रहे तो, वे दिन दूर नहीं जब सरकारी स्कूल सिर्फ एक कहानी बनकर रह जाएंगे।
आलम यह है कि आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद कई अभिभावक अपने बच्चों का निजी विद्यालयों में प्रवेश कराने को मजबूर है। नौनिहालों को बेहतर शिक्षा मिल सकें इस उम्मीद के साथ गांव से पलायन कर शहर की ओर रूख कर रहे हैं। जिसकी मुख्य वजह सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव और व्यवस्थाओं की भारी कमी है।
कुछ ऐसा ही हाल ताकुला विकासखंड के राजकीय प्राथमिक विद्यालय कांडे का है। यहां जर्जर भवन में नौनिहाल अपना भविष्य बनाने को मजबूर है। जीर्ण क्षीर्ण हो चुकी छत के गिरने का खौफ का साया इस कदर की छात्रों व शिक्षकों की नजरें किताबों में कम छत की ओर अधिक रहती है।
क्षतिग्रस्त भवन के पुनर्निर्माण की मांग को लेकर एसएमसी अध्यक्ष सतीश चन्द्र लोहनी के नेतृत्व में अभिभावकों का एक शिष्टमंडल गत मंगलवार को डीएम आलोक कुमार पांडेय से मिला। डीएम को सौंपे ज्ञापन में कहा कि विद्यालय का भवन अधिकांश क्षतिग्रस्त हो चुका है। दीवारों में जगह जगह दरारें बनी हैं। जिससे छत गिरने का खतरा हमेशा बना रहता है।
ज्ञापन में यह भी कहा कि शिक्षक बच्चों को स्कूल भवन के बरामदे में बैठाकर पढ़ाने को विवश है। बरसात के समय स्थिति और भी ज्यादा भयावह हो जाती है। कहा कि गत वर्ष जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा भवन निर्माण कार्य का आंगणन निदेशालय को भेजा था, जिस पर निदेशक प्रारम्भिक शिक्षा द्वारा आपत्ति लगाते हुए कुछ औपचारिकताएं पूर्ण करने की बात कही थी। जिसके बाद दोबारा आंगणन नहीं भेजा गया है। शिष्टमंडल ने डीएम से मामले में कार्यवाही की मांग की है।
शिष्टमंडल में उमेश चंद्र, रमा आर्या, पूजा देवी, चंपा आर्या, दीप्ति भोजक आदि शामिल रहे।